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३. शिक्षा की सार्थकता इसमें है कि ३. शिक्षा को एक ऐसा लक्ष्य भी प्रदान करना
आजीविका जुटा दे।
होता है जिसके प्रति विद्यार्थी अपने आप को समर्पित कर सके ।
४. ध्यान उनके लिए है जो मुमुक्षु है ।
५. वीतरागता अध्यात्म का मार्ग है।
६. संकल्प करने से सफलता मिल जायेगी।
७. रोग की जड़ शरीर में है ।
८. प्रवृत्ति और निवृत्ति में विरोध है ।
९. अनुकूल निमित्त सफलता दिलाते हैं।
१०.
भोग हमें पुष्ट करते हैं ।
११. दमन हानिकारक है।
१२. सुविधाएं अभीष्ट हैं । १३. तप व्यर्थ है ।
१४. आध्यात्मिक तत्त्व परोक्ष है ।
१५. सृष्टि जड़ से बनी है।
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002
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४. ध्यान लौकिक सफलता के लिए भी महत्त्वपूर्ण है ।
५. तटस्थ भाव के बिना हम लौकिक समस्याओं का भी ठीक समाधान नहीं खोज पाते।
६.
७.
८.
संकल्प से सफलता तभी मिलती है जब संकल्प गहराई में उस अवचेतन मन तक पहुंचा हुआ हो जिस अवचेतन मन तक वह आदत पहुंची हुई है जिसे हम बदलना चाहते हैं ।
रोग की जड़ मनोभावों में है।
कोरी प्रवृत्ति विक्षिप्तता उत्पन्न करती है। कोरी निवृत्ति निकम्मापन लाती है । दोनों में सामञ्जस्य चाहिए।
९. निमित्तों से मिलने वाली सफलता स्थायी नहीं है । स्थायी सफलता उपादान पर टिकी है।
१०. भोग हमारी प्राण-शक्ति का ह्रास करते हैं ।
११. यौन की स्वच्छन्दता विक्षेप का कारण है ।
१२. सहिष्णुता आवश्यक है।
१३. तप शरीर के परमाणुओं को चुम्बकीय क्षेत्र में बदल देता है जिससे शरीर परदर्शी बन जाता है और चेतना बाहर झांक सकती है।
१४. हमारे अस्तित्व में मन, बुद्धि, प्राण आदि अनेक अंश सूक्ष्म हैं किंतु परोक्ष नहीं । १५. सृष्टि का निर्माण प्राणियों के भीतर बैठी चेतना कर रही है ।
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