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- भंते। क्या अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं? उद्योतित करते हैं? तप्त
करते हैं? प्रभासित करते हैं? – कालोदायी। क्रुद्ध अनगार ने तेजोलेश्या का निसर्जन किया, वह दूर जाकर दूर देश में गिरती है, पार्श्व मे जाकर पार्श्व देश में गिरती है। वह जहां-जहां गिरती है, वहांवहां उसके अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभावित करते हैं। कालोदायी। इस प्रकार वे अचित्त पुद्गल भी वस्तु
को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभावित करते हैं। अग्नि नहीं, अग्नि सदृश द्रव्य ___तत्थ णं जे से विग्गहगति समावन्नए नेरइए से णं अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा। (भगवई 14/54, 55)
नारकक्षेत्रे बादरागिनकायस्याभावात्, मनुष्यक्षेत्रे एव तद्भावात्, यच्चोत्तराध्ययनादिषु श्रूयतेहुयासणे जलंतंम्मि दड्डपुव्वो अणेगसो। इत्यादि तदग्निसदृशद्रव्यान्तरापेक्षयावसेयं, संभवन्ति च तथाविधशक्तिमन्ति द्रव्याणि तेजोलेश्याद्रव्यवदिति । (भगवई टीका 14/54, 55) वायु के बिना अग्नि नहीं जलती
न विणा वाऊयाएणं अगणिकाय उज्जलति। (भगवई 17/5) अचित्त अग्नि
इंगालरासिं जलियं सजोई, तओवमं भूमिमणुक्कमंता। ते डज्झमाणा कलुणं थणंति, उसुचोइया तत्थ चिरट्टिईया । (सूयगडो 5/1/7)
वे जलती हुई ज्योति सहित अंगारराशि के समान भूमि पर चलते हैं। उसके ताप से जलते हुए वे चिल्ला चिल्लाकर करुण क्रन्दन करते हैं। वे चिरकाल तक उस नरक में रहे हैं। इंगालसिं
जधा इंगालरासी जलितो धगधगेति एवं ते नरकाः स्वभावोष्णा एव ण पुण तत्थ बादरो अग्गी अत्थि, उसिणपरिणता पोग्गला जंतवाडचुल्लेओ वि उसिणतरा । (सूत्रकृतांग चूर्णि, पृ. 128)
तत्र बादरानेरभावात्तदुपमां भूमिमित्युक्तम्, एतदपि दिग्दर्शनार्थमुक्तम्, अन्यथा नारकतापस्येहत्याग्निना नोपमा घटते, ते च नारका महानगरदाहाधिकेन तापेन दह्यमाना। (सूत्रकृतांग वृत्ति. पत्र 129)
विधूमो नामाग्निरेव, विधूमग्रणाद्, निरिन्धनोऽग्निः स्वयं प्रज्वलितः सेन्धनस्य ह्यग्नेरवश्यमेव धूमो भवति। (चूर्णि, पृ. 136)
वैक्रियकालभवा अग्नयः अघट्टिता पातालस्था अप्यनवस्था। (चूर्णि, पृ. 137) तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002
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