Book Title: Tulsi Prajna 2002 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 93
________________ इसी भांति जिनचंद्र सूरि अकबर प्रतिबोधक रास एवं युगप्रधान निर्वाण रास से यह ऐतिहासिक तथ्य भी स्पष्ट होते हैं कि वि.सं. 1648 में सम्राट अकबर के आमंत्रण पर जिनचंद्र सूरि उनसे मिले। अकबर युगप्रधान जिनचन्द्र की विद्वत्ता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने (अकबर ने) जीव हिंसा निषेध के फरमान जारी किये।” ऐसे ही एक अन्य ऐतिहासिक सूत्र का परिचय हमें कालू यशोविलास के दूसरे अध्याय में मिलता है, जहां कवि आचार्य तुलसी ने जर्मन विद्वान् हर्मन जैकोबी का साक्षात्कार लाडनूं में वि.सं. 1970 की फाल्गुन शुक्ला 10 को होने का उल्लेख किया है। जैन संत रचनाकारों ने अपनी लोक प्रचलित ढालों के साथ ही शास्त्रीय रागों और छंदबंधों से भी अपने साहित्य को नवीनता एवं सहजता प्रदान की है। हीयान्द्री, संधि, टब्बा, बालावबोध, पीढियावली, पटावली, गुरुनामावली आदि जैन साहित्य की भारतीय साहित्य को महत्त्वपूर्ण देन है। इस नवीन देन में जैन कवि बनारसीदास लिखित अर्धकथानक का विशिष्ट महत्त्व है। जीवन-साहित्य के इतिहास में इसे हम पहली और महत्त्वपूर्ण रचना मान सकते हैं। इस प्रकार जैन साहित्य में औपदेशिक वृत्ति के साथ विषयान्तर से परम्परागत बातों के विस्तृत विवरण से हम परिचित होते हैं, फिर भी इसे हम मात्र पिष्टपेषण अथवा धार्मिक नोटिस मात्र नहीं कह सकते। लोकपक्ष और भाषा की दृष्टि से साहित्य जगत् में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस साहित्य में भारतीय सोच की आदर्श स्थापना है। नैतिक एवं धार्मिक मान्यताओं को जनभाषा में समन्वित कर राष्ट्र के आध्यात्मिक स्तर को पुष्ट करने के उल्लेखनीय प्रयास हैं। देशज भाषा और शैली को अपनाकर इन रचनाकारों ने संपूर्ण समाज को एक सूत्र में जोड़ने का प्रयत्न किया है। यही इस साहित्य की सबसे बड़ी उपलब्धि, प्रासंगिकता और गरिमा कही जानी चाहिए। संदर्भ : 1. आचार्य महाप्रज्ञ-जैनदर्शन और अनेकान्त, पृ. 78, प्रथम संस्करण 1983 2. वही, पृ. 92-93 3. यद्यपि दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय भी इनकी संख्या के प्रति एकमत नहीं हैं, फिर भी मुख्य रूप से अंग और उपांग नाम से जानी जाने वाली शास्त्रीय रचनाएं इस प्रकार हैंअंग-11-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र । उपांग-औपपातिक, रायपसेणिय, जीवाजीवभिगम, प्रज्ञापना, सूर्य-प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूला, वृष्णिदशा। -महेशचन्द्र श्रीवास्तव-जैन धर्म एवं दर्शन (उत्तराध्ययन सूत्र के विशेष आलोक में), पृ. 15-17, प्रथम संस्करण, 1991 ई. 90 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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