Book Title: Tulsi Prajna 2002 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 41
________________ 15. सेयो अयोगुलो भुत्तो तत्तो अग्निसिखूपमो। यञ्चे भुजेरूय दुस्सीलो रट्ठपिण्डं असञ्जतो ॥ -वही, 308 । 16. यो पाणमतिपातेति मुसावादञ्च भासति । लोके अदिन्नं आदियति परदारञ्च गच्छति ॥ सुरामेरयपानञ्च यो नरो अनुयुञ्जति। इधेवमेसो लोकमि मूलं खनतिअत्तनो॥-धम्मपद, 246-247 17. सत्तक, अंगुत्तर निकाय। 18. वसल सुत्त, सुत्तनिपात। 19. पाली साहित्य का इतिहास, पं. राहुल सांकृत्यायन लखनऊ 1963 20. अहिंसक सुत्त 21. तिकनिपात, अंगुत्तर निकाय। 22. धर्मः समासतौहिंसा वर्णयन्ति तथागतः, चतु:शतक, 298 । 23. (क) फिक, रिचर्ड, सोशल आर्गनाइजेशन इन नार्थ-ईस्ट इण्डिया इन बुद्धाज टाइम, पृष्ठ 85, 253,321, 322 (ख) सिंह, मदनमोहन, बुद्धकालीन समाज और धर्म, पृष्ठ 22 (ग) मज्झिमनिकाय, जिल्द 2, पृष्ठ 84, 148, दीघनिकाय, जिल्द 1, पृष्ठ 90-91, 103 सुत्तनिपात 1/7/21,3/9/57, अंगुत्तरनिकाय 1, पृष्ठ 19, उदान, 1/15 (घ) बौद्धधर्म के विकास का इतिहास, पाण्डेय, गोविन्दचन्द्र, पृष्ठ 27-31 (ङ) बौद्ध तथा जैनधर्म-डॉ. महेन्द्रनाथ सिंह, वाराणसी 1990, पृ. 177-178 24. अस्सलायनसुत्त (मज्झिमनिकाय, 2/5/31) पृष्ठ 390 । 25. बौद्ध एवं जैन आगमों में नारी जीवन, डॉ. कोमल चन्द जैन, वाराणसी 26. अंगुत्तरनिकाय, पंचक-अट्ठकनिपात । 27. (क) पंचक निपात, (ख) बौद्ध संस्कृति का इतिहास-डॉ. भगचन्द जैन, नागपुर 1972, पृ. 255-257 29, विद्याविहार कॉलोनी उत्तरी सुन्दरवास, उदयपुर-313001 (राजस्थान) 38 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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