Book Title: Tulsi Prajna 2002 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ कल्याणकारी धर्म : __ भगवान् बुद्ध करुणा की मूर्ति थे। समस्त जनता को अनेक प्रकार के दुःखों से दुःखी देखकर सर्वप्रथम उनके मन में करुणा का उत्पाद हुआ। अन्ततोगत्वा उपाय की खोज में उन्होंने गृहत्याग किया और उरुवेला में बोधिवृक्ष के नीचे अनुपम ज्ञान प्राप्त कर बुद्ध हुए। इस तरह उनमें महाकरुणा और महाप्रज्ञा विकास की चरमकोटि को प्राप्त कर, समरस होकर स्थित थीं। 'बुद्धं सरणं गच्छामि' में बुद्ध शब्द का अर्थ होता है भगवान बुद्ध के स्कन्ध द्रव्यों में होने वाले अर्हत्व आदि 9 गुण । अर्हत् आदि नवगुणों को ही बुद्ध कहा जाता है । बुद्ध और संघ के बीच 'धम्म' मध्यस्थता करता है। बुद्ध ने धम्म का साक्षात्कार किया और अपने बाद 'धम्म' को अपना प्रतिनिधि बनाया। 'धम्म' के लिए बुद्ध ने अपने को विसर्जित कर दिया। 'धम्म' के प्रचार के लिए, ब्रह्मचर्य के प्रकाश के लिए संघ का आयोजन हुआ। बुद्ध के बाद उसका नियन्त्रणकर्ता भी 'धम्म' ही हुआ, कोई व्यक्ति नहीं। वस्तुतः बुद्ध ने अपने जीवनकाल में भी कभी यह नहीं माना कि वे संघ का संचालन कर रहे हैं । धम्म के द्वारा ही वे संघ को संचालित मानते थे। जिस धर्म का बुद्ध ने साक्षात्कार किया, उसे आदि में कल्याणकारी, मध्य में कल्याणकारी और अन्त में भी कल्याणकारी कहा गया है। बौद्ध धर्म में धर्म और सत्य एक माना गया है तथा दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। धर्म सत्य के ही मार्ग का नाम है। धम्मपद में भी सत्य, संयम, दम और अहिंसा को धर्म के ही अन्तर्गत माना गया है यम्हि सच्चन्च धम्मो च अहिंसा सन्नगो दमो॥ -धम्मपद 261 ____ आचार्य बुद्धघोष ने विसुद्धिमग्ग में धर्म शब्द के मुख्यतः चार अर्थों का विवेचन किया है-1. सिद्धान्त, 2. हेतु, 3. गुण और 4. निसत्त । बौद्ध साहित्य में धर्म शब्द का प्रयोग और भी व्यापक अर्थ में किया गया है। वह कहीं स्वभाव, कहीं कर्त्तव्य, कहीं वस्तु और कहीं विचार और प्रज्ञा का वाचक भी बनकर आया है। इसके अतिरिक्त धर्म का प्रयोग बोधि-धर्म या ज्ञान धर्म के लिए भी किया गया है। बौद्ध परम्परा के लोग ज्ञान को ही सच्चा धर्म मानते थे। ज्ञान के अतिरिक्त धर्म शब्द का प्रयोग सत्य के अर्थ में भी मिलता है। धम्मपद में धर्म शब्द का प्रयोग भगवान् बुद्ध के उपदेशों के लिए किया गया है। उसमें कहा गया है कि बुद्धिमान् लोग धर्म अर्थात् भगवान् बुद्ध के वचनों को सुनकर उसी प्रकार शुद्ध और निर्मल हो जाते हैं जिस प्रकार गम्भीर जलाशय में जल निर्मल हो जाता है। जो अच्छी तरह उपदिष्ट धर्म में धर्मानुचरण करते हैं, वे ही दुरस्त मृत्यु के राज्य को पार कर सकते हैं ये च खो सम्दक्खाते धम्मानुवत्तिनो। तेजना पारमेस्सन्ति मच्चुधेयं सदुत्तरं॥ -धम्मपद, 86 इस प्रकार हम देखते हैं कि धम्मपद में धर्म शब्द का प्रयोग भगवान् बुद्ध के उपदेशों के अर्थ में किया गया है। इस धम्म सिद्धान्त में समाज के उत्थान के सूत्र समाहित हैं। 30 - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138