Book Title: Tulsi Prajna 2002 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ वर्णित हैं। इसी आधार पर आचार्य सिद्धसेन ने सेना का निर्माण किया था। जब राजा पर विरोधी सेना ने आक्रमण कर दिया तो असहाय राजा सिद्धसेन के पास आकर बोला-अब आप ही कोई उपाय करें। सिद्धसेन ने इसी विधि के आधार पर तालाब से घुड़सवार पैदा कर दिए। आक्रमणकारी सेना भाग गई। विधान है कि योनिप्राभृत के सिद्धान्त का पारायण रात्रि के उस प्रहर में हो, जब कोई सुन न पाए। आचार्य एक बार रात्रि में शिष्य को पढ़ा रहे थे। रात्रि में बारह बजे के बाद कोई व्यक्ति आ गया। वे बता रहे थे कि अमुक प्रयोग किया जाए तो तालाब में मछलियां ही मछलियां पैदा हो जाएंगी। उसने सुन लिया। दूसरे दिन देखा गया कि तालाब में मछलियां ही मछलियां हो गई हैं। प्रश्न हुआ कि यह कैसे हो गया? पता चला कि किसी ने उस विधि को सुन लिया है। क्लोन की बात हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं है। पर सब विषयों में हमारा ज्ञान, खोज, रिसर्च होनी चाहिए। सिर्फ परम्परा के आधार पर कोई समाधान नहीं प्राप्त होगा। हमारे सामने ऐसे बहुत सारे प्रश्न आते हैं, इसलिए हमने व्याख्यान में इसका उल्लेख किया, जिससे सबको ज्ञात रहे। अभी-अभी एक प्रश्न आया कि विद्युत् सचित्त नहीं है तो क्या एक साधु स्विच को चालू कर सकता है या बन्द कर सकता है? यह व्यवहार की बात है। प्रयोग करना या न करना, यह हमारे व्यवहार की बात है। हम कितना प्रयोग करें, कितना न करें? इस सन्दर्भ में अभी नहीं कह सकते। वर्जित है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि विद्युत् को हम सचित्त मानते हैं। पर प्रयोग करने में विवेक से काम लेते हैं कि कितना व्यर्थ का काम होता है, कितना सार्थक काम होता है। दो बाते हो गईं-सिद्धान्त और व्यवहार । व्यवहार में कितना काम में लेना, यह अलग बात है। व्यवहार में बहुत सारी बातें वर्जित भी होती हैं। यह खाना, यह नहीं खाना। ऐसे में सिद्धान्त को प्रयोग में लाएं तो बड़ी विचित्र बात हो जाती है। सिद्धान्ततः विहित है, पर व्यवहार में बहुत सारी वर्जित हैं, क्योंकि स्विच को ऑन और ऑफ करने में बहुत सारी समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। इसलिए अभी व्यवहार में इसे नहीं लेते। किन्तु सिद्धान्ततः यही बात मान्य है कि विद्युत् सचित्त नहीं है। हम ऐसा नहीं करते, इसलिए यह बात गलत है, ऐसा नहीं होना चाहिए। गलत या सही होने का आधार या तो आगम हैं या दूसरे ऐसे कोई तथ्य, जिनके आधार पर यह मानना पड़े कि यह बात सही नहीं है। अपनी परम्परा निभाओ, किन्तु दूसरों पर आरोपित मत करो कि हम जो कर रहे हैं, वह तुम नहीं करोगे तो गलत होगा। तुम्हारी इच्छा है तो बाजरी की रोटी के अतिरिक्त कुछ मत खाओ। जिस व्यक्ति को जमीन के नीचे पानी देखना है, उसके लिए प्राचीन योग का नियम है कि छह महीने तक बाजरी के सिवाय और कुछ न खाएँ। तभी वह शक्ति, वह दृष्टि पैदा होती है। यह अपनी साधना है, अपना प्रयोग है। अपनी-अपनी रुचि है, पसन्द है। हम किसी की रुचि को प्रतिबन्धित या नियन्त्रित करना नहीं चाहते। प्रश्न है सिद्धान्त का। सिद्धान्त क्या कहता है? इस पर हमें विचार करना है। इसी आधार पर हमारा निर्णय होना चाहिए। (आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रदत्त प्रवचन'. विज्ञप्ति 14-20 अप्रैल, 2002) तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 - - 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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