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तीर्थङ्कर महावीर
उस मेंढिय ग्राम में रेवती - नामक गाहावइणी ( गृहपति की पत्नी )
रहती थी । वह बड़ी ऋद्धिवाली थी ।
भगवान् जब साणकोष्ठक चैत्य में थे, उसी समय पीड़ाकारी अत्यन्त दाह करने वाला पित्तज्वर हुआ,
( पृष्ठ १३१ की पादटिप्पणि का शेषांश ) मालुका नाम एकास्थिका वृक्षविशेषाः ।
- पत्र १२६६
'मालुया कच्छ' शब्द ज्ञाताधर्मकथा सटीक में भी आया हैं । वहाँ 'माया' की टीका करते हुए लिखा है
एकास्थि फलाः वृक्ष विशेषाः मालुकाः प्रज्ञापनाभिहितास्तेषां कक्षो गहनं मालुका कक्षः, चिर्भटिका कच्छुकः इति ।
वृक्ष है
-:
-२, ३७ पत्र ८४-१
प्रज्ञापनासूत्र सटीक [ पत्र ३१-२ ] में लिखा है कि यह देश-विशेष का
" मालुको देश विशेष प्रतीतौ ।”
२ - ' कक्ष' पर टीका करते हुए भगवती के टीकाकार ने लिखा है
यत्कक्षं गहनं तत्तथा
भगवान् को महान् जिसकी पीड़ा सहन
- पत्र १२६६
वह ' कक्ष' शब्द भगवतीसूत्र [ शतक १,३०८ ] में भी आया है । वहाँ टीकाकार ने लिखा है
'कच्छे' नदी जलपरिवेष्टिते वृत्तादिमति प्रदेशे ।
दानशेखरगणि ने अपनी टीका में लिखा है"नदी जल परिवेष्टिते वल्ल्यादि मिति प्रदेशे "
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आचारांग सूत्र श्रु० २ ० ३ में कक्ष की टीका इस प्रकार दी है नद्यासन्न निम्नप्रदेशे मूलकवालुङ्कादिवाटिकायां ।
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- पत्र १६२
— पत्र ३६
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