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३१-वाँ वर्षावास अम्बड परिव्राजक
चातुर्मास्य समाप्त होने के बाद भगवान् ने विहार किया और काम्पिल्यपुर नगर के बाहर सहस्राम्रवन में ठहरे ।
काम्पिल्यपुर में अंबड-नामक परिब्राजक रहता था । उसे ७०० शिष्य थे । परिव्राजक का वाह्य वेश और आचार रखते हुए भी, वह जैन-श्रावको के पालने योग्य व्रत-नियम पालता था ।
भगवान् के काम्पिल्यपुर पहुँचने पर गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा- "हे भगवान् ! बहुत-से लोग परस्पर इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, ज्ञापित करते हैं और प्ररूपित करते हैं कि, यह अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर-नगर में सौ घरों में आहार करता है एवं सौ घरों में निवास करता है । सो हे भंते ! यह बात कैसे है ?"
गौतम स्वामी का प्रश्न सुनकर भगवान् ने कहा- "हे गौतम ! बहुत से लोग जो एक दूसरे से इस प्रकार कहते यावत् प्ररूपते हैं कि. यह अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में भिक्षा लेता है और सौ घरों में निवास करता है सो यह बात बिलकुल ठीक है । गौतम ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ यावत् इसी प्रकार प्ररूपित करता हूँ कि, यह अम्बड परिव्राजक एक साथ सौ घरों में आहार लेता है और सौ घरों में निवास करता है ।”
गौतम स्वामी-"यह आप किस आशय से कहते हैं कि अम्बड परिव्राजक सौ घरों में आहार लेता है और सौ घरों में निवास करता है ?"
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