Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 720
________________ ६५२ अति तोर्थंकर महावीर -राजा उनके चरणों की वंदना करके, उनकी प्रदक्षिणा करके न और न अति निकट रहकर हाथ जोड़कर पूछने लगा । दूर इस वर्णन से ही स्पष्ट है कि श्रेणिक जैन परम्परा से परिचित था । अनाथी ऋषि से उसकी जो वार्ता हुई, उसका विषद वर्णन उत्तरा १ ' में है । और, उस वार्ता के पश्चात् तो एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणागार सोहं परमाए भत्तिए । सश्रोरोहोय सपरियणो य, धम्मागुरत्तो विमलेण चेयसा ॥ * - इस प्रकार राजाओं में सिंह के समान श्रेणिक राजा अणगार सिंह मुनि की स्तुति करके परम भक्ति से अपने अंतःपुर के साथ परिजनों और भाइयों के साथ निर्मल चित्त से धर्म में अनुरक्त हो गया । मंडिकुक्षि में श्र ेणिक के धर्मानुरक्त होने का उल्लेख डाक्टर राधाकुमुद मुखर्जी ने भी किया है, पर उन्होंने लिखा है कि, वहाँ श्रेणिक की भेंट अणगार सिंह महावीर स्वामी से हुई थी । उत्तराध्ययन में उस ऋषि ने स्वयं अपना परिचय दिया है : १ – उत्तराध्ययन, नेमिचन्द्र की टीका, अध्ययन २०, पत्र २६७-२ -- २७३-१ २ - वही, अध्ययन २०, गाथा ५८ पत्र २७३ -१ ३ - ( अ ) हिन्दू सिविलाइजेशन, पृष्ठ १८७ ( आ ) भारतीय विद्याभवन द्वारा प्रकाशित हिस्ट्री ऐंड कलर आव 'द' पीपुल', खंड २ (द' एज आव इम्पीरियल यूनिटी ) में 'द' राइज आव मगधन इम्पीरियलिज्म' पृष्ठ २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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