Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 737
________________ सुक्ति-माला तमेव धम्म दुविहं प्राइक्खइ। तं जहा–अगारधम्म अणगारधम्म च, अणगारधम्मो ताव इह खलु सव्वश्रो सन्चत्ताए मुंडे भवित्ता अगारातो अपगारियं पव्वयइ सव्वाश्रो पाणाइवायाश्रो वेरमणं मुसावाय. अदिण्णादाण० मेहुण० परिग्गह. राईभोयणाउ वेरमणं अयमाउसो ! अणगारसामइए धम्मे पण्णत्ते, एअस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए निग्गंथे वा निग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति । आगारधम्म दुवालसविहं प्राइक्खइ, तं जहा-पंच अणुव्वयाई तिरिण गुणवयाई चत्तारि सिक्खावयाइं पंच अणुव्वयाइं, तंजहा-थूलाग्रो पाणाइवायायो वेरमणं, थूलायो मुसावायाश्रो वेरमणं, थूलामो अदिन्नादारणाश्रो वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिणामे, तिषिण गुण व्वयाई तंजहा-अणत्थदंडवेरमणं दिसिन्वयं, उवभोगपरिभोगपरिमाणं चत्तारि सिक्खावयाई तंजहा-सामाइअं, देसावगासियं, पोसहोववासे अतिहिसंयअस्स विभागे, अपच्छिमा मारणंतित्रा संलेहणा जूसणाराहणा अयमाउसो ! अगार सामइए धम्मे पण्णत्ते, अगार धम्मस्स लिखाए उवट्ठिए समणोवासए समणोवासिया वा विहरमाणे आणाइ श्राराहए भवति । -औपपातिकसूत्र सटीक, सूत्र ३४, पत्र १४८-२५५ लोक है । अलोक है । जीव है। अजीव है । बंध है । मोक्ष है । पुण्य है । पाप है। आश्रव है। संवर है। वेदना है। निर्जरा है । अर्हन्त है । चक्रवर्ती है। बलदेव है । वासुदेव है। नरक है। नारक है। तियच योनिवाला है। तियेच योनि वाली मादा है। माता है । पिता है । ऋषि है । देव है। देवलोक है । सिद्धि है। सिद्ध है। परिनिर्वाण है । परिनिवृत्त जीव है। १ प्राणातिपात ( हिंसा) है । २ मृषावाद है। ३ अदत्तादान है । ४ मैथुन है। ५ परिग्रह है। ६ क्रोध है। ७ मान है। ८ माया है । ९ लोभ है । १० प्रेम है। ११ द्वेष है। १२ कलह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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