Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 755
________________ सूक्ति-माला ६८७ -सात प्रकार से आयु का क्षय होता है-१ ( भयानक ) अध्यवसाय से, २ ( दण्ड-लकड़ी-कुशा-चाबुक आदि ) निमित्त से, ३ (अधिक ) आहार से, ४ ( शारीरिक ) वेदना से, ५ ( कूएँ में गिरना) पराघात से, ६ स्पर्श (साँप-विच्छी आदि के डंक से ), ७ श्वास-उच्छास ( के निरोध से )। णवविधे पुन्ने पं० तं०-अन्नपुन्ने १, पाणपुरणे २, वत्थपुण्णे ३, लेणपुराणे ४, सयणपुगणे ५, मणपुगणे ६, वतिपुराणे ७, कायपुरणे ८, नमोक्कारपुण्णे है । -ठा० । सू० ६७६ पत्र ४५०-२ -पुण्य ६ कहे गये हैं-१ अन्नपुण्य, २ पानपुण्य, ३ वस्त्रपुण्य, ४ लेणपुण्य (आवास), ५ शयनपुण्य, ६ मनपुण्य (गुणीजन को देखकर मन में प्रसन्न होना), ७ वचनपुण्य ( गुणीजन के वचन की प्रशंसा करने से प्राप्त पुण्य ), ८ कायपुण्य ( सेवा करने से प्राप्त पुण्य ), ९ नमस्कार पुण्य । दस विहे दोसे ५० तं0-तजातदोसे १, मतिभंगदोसे २, पसत्थारदोसे ३, परिहरण दोसे ४, सलक्खण ५, कारण ६, हेउदोसे ७, संकामणं ८, निग्गह , वत्थुदोसे १० । . -सटीक ठा० १०, उ० ३, सूत्र ७४३ पत्र ४९२-१ -दोष दश प्रकार के हैं-१ तज्जातदोष, २ मतिभंगदोष, ३ प्रशास्तृदोष, ४ परिहरणदोष, ५ स्वलक्षणदोष, ६ कारणदोष, ७ हेतुदोष, ८ संक्रामणदोष, ६ निग्रहदोष, १० वस्तुदोष । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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