Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 756
________________ तीर्थंकर महावीर समवायांगसूत्र सटीक (80) सत्त भट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा — इहलोगभए, परलोगभए, श्रदाण - भए, अकम्हाभए, आजीवभए, भरणभए, असिलोगभए । දියස - पत्र १२-२ -भय के सात स्थान कहे गये हैं - १ इस लोक सम्बन्धीभय, २ परलोक-सम्बन्धी भय, ३ आदान भय, ४ अकस्मात् भय, ५ आजीविका भय, ६ मरण भय, ७ अकीर्ति भय । ( 85 ) सविहे समम्मे पन्नत्ते, तं० जहा — खंती, मुत्ती, श्रज्जवे, मद्दत्रे,, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे । - पत्र १६-१ - दस प्रकार का साधु-धर्म कहा गया है - १ क्षांति, २ मुक्ति ( निर्लोभता ), ३ आर्जव, ४ मार्दव, ५ लाघव, ६ सत्य, ७ संयम, ८ तप, ९ त्याग, ९० ब्रह्मचर्यवास | भगवती सूत्र सटीक ( ४६ ) ( प्र० कह णं भंते ! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ? ) (उ०-) गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं तं जहा - पाणे इवात्ता, मुखं वाइत्ता, तहारुवं समणं वा, माहणं वा, अफासुरणं, सखिज्जेणं, ग्रा-पाण खाइम - साइमेणं पडिलामेता, एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति । - भगवतीसूत्र श० ५० ६ - हे गौतम! तीन कारणों से जीव अल्पायु कारणभूत कर्म पकड़ता है - १ प्राणों को मार कर, २ मृपा बोलकर, ३ तथारूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782