Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 759
________________ सूक्ति-माला (५५) फासिंदियदुइंतत्तणस्स अह एत्तिो हवइ दोसो। जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥१०॥ -पृष्ठ २०६ -जो मनुष्य स्पर्शेन्द्रिय के वशीभूत होते हैं वे हाथी के समान पराधीन होकर अंकुश से मस्तक पर बिंधे जाने की पीड़ा भोगते हैं। प्रश्न व्याकरण सटीक तस्स य नामाणि इमाणि गोण्णाणि होति तीसं, तंजहा-पाणवहं १, उम्मूलणा सरीरात्रो २, अवीसंभो ३, हिंसा विहिंसा ४, तहा अकिच्चं च ५, धायणा ६, मारणा य ७, वहणा ८, उद्दवणा ६, तिवायणा य १० श्रारंभसमारंभो ११, श्राउयकम्मस्सुववो भेयणि वणगालणा य संवट्टगसंखेवो १२, मच्चू ११, असंजमो १४, कडगमद्दणं १५, वोरमणं १६, परभव संकामकारो १७, दुग्गतिप्पवायो १८, पावकोवो य १६, पावलोभो २०, छविच्छेो २१, जीवियंत करणो २२, भयंकरो २३, अणकरो य २४, वज्जो २५, परितावणअण्हो २६, विणासो २७, निज्जवणा २८, लुंपणा २६, गुणाणं विराहणत्ति ३०, विय तस्स एवमादीणि णाम धेज्जाणि होति तीसं पाणवहस्स कुलसस्स कडुयफलदेसगाई। . -पत्र ५-२ -पूर्वोक्त स्वरूप वाले उस प्राणवध के नाम गुणों से होने वाले तीस होते हैं-१ प्राणवध, २ उन्मूलना शरीरात (जीव को शरीर से अलग करना), ३ अविश्रम्भ ( अविश्वास का कारण होने से इसे अविश्रम्भ कहते हैं ), ४ हिस्य-विहिंसा (जीवों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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