Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 736
________________ ६६८ तीर्थंकर महावीर पडिपुण्णे णे पाऊण सल्लकत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे ज्जिामग्गे अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इहटिया जीवा लि. उति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खणमंत करंति । एगच्चा पुण एगे भयंतारो पुवकम्मावसेसेणं अण्ण्यरेसु देवलोएसु उववत्तारो भवन्ति, महड्डी एसु जाव महासुक्खेसु दूरंगइएसु चिरट्रिईएसु, ते णं तत्थ देवा भवंति महडीए जाव चिरहिईश्रा हारविराइयवच्छा जाव पभासमाणा कप्पोवगा गति कल्लाणा अागमेसिभद्दा जाव पडिरूवा, तमाइक्खइ एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा णेरइअत्ताए कम्मं पकरंति, णेरइयत्ताए कम्मं पकरेत्ता रणेरइसु उववज्जंति, तंजहा'महारंभयाए, महापरिगहयाए, पंचिदियवहेणं, कुणिमाहारेणं, एवं एएणं अभिलावेणं तिरिक्खजोणिएसु माइल्लयाए णिअडिल्लाए अलिअवयोणं उक्कंचणचाए वंचणयाए, मणुस्सेसु पगतिभद्दयाए पगति विणीतताए साणुक्कोसयाए अमच्छरियताए, देवेसु सरागसंजमेणं संजमासंजमेणं अकामणिज्जराए बालतवो कम्मेणं तमाइक्खइ जह णरगा गम्भेति जे णरगा जा य वेचणा गरए । सरीरमाणसाई दुक्खाई तिरिक्ख जोणीए ॥१॥ माणुस्सं च अणिच्चं वाहिजरामरणवेयणा पउरं । देवे अ देवलोए देविyि देवसोक्खाई ॥२॥ गरगं तिरिक्ख जोणि माणुसभावं च देवलोमं च । सिद्ध अ सिद्धवसहिं छज्ज वणियं परिकहेइ ॥३॥ जह जीवा बज्झति मुच्चंति जह य परिकिलिस्संति । जह दुक्खाणं अंतं करंति केइ अपडिबद्धा ॥४॥ अदृदुहट्टिय चित्ता जह जीवा दुक्खसागा भुविति । जह वेरग्गमुवगया कम्म समुग्गं विहाडंति ॥५॥ जहा रागेण कडाणं कम्माणं पावगो फल विवागो । जह य परिहीणकम्मा सिद्धा सिद्धालयभुवेंति ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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