Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 724
________________ ६५६ तीर्थंकर महावोर को दुखी होने का उल्लेख एक बौद्ध-ग्रन्थ मंजुश्रीमूलकल्प में भी मिलता है ।' यदि कूणिक ने स्वयं हत्या की होती तो उसे इस प्रकार विलाप करने का कोई कारण नहीं था । इसी आत्मग्लानि के कारण कूणिक ने अपनी राजधानी राजगृह से बदल कर चम्पा कर ली थी। * श्रेणिक की मृत्यु की कथा बड़े विस्तार से निरयावलिकासूत्र में आती है । यह श्रेणिक मर कर नरक गया और अगली चौवीसी में प्रथम तीर्थकर होगा । इस सम्बंधी स्वयं भगवान् महावीर ने सूचना दी थी ( देखिए, पृष्ठ ५१-५२ ) । नरक जाने का कारण स्पष्ट करते हुए देवविजय गणि-रचित पाण्डवचरित्र ( पृष्ठ १४७ ) में पाठ आता है मांसात् श्रेणिकभूपतिश्च नरके चौर्याद् विनष्टा न के ? तद्रूप ही उल्लेख सूक्तमुक्तावलि में भी है । हम उसका पाठ पृष्ठ १५४ पर दे चुके हैं। श्रेणिक का भावी तीर्थङ्कर जीवन विस्तार से ठाणांगसूत्र सटीक ठा० ९, उ० ३ सूत्र ६९३ पत्र ४५८-२ – ४६८-१ में आया है । साल पृष्ठ चम्पा -- - नामक नगर में साल-नामक राजा राज्य करता था । उसका भाई महासाल था । वही युवराज पद पर था । इनके पिता का १- ऐन इम्पीरियल हिस्ट्री आव इंडिया जयसवाल सम्पादित, मंजुश्री मूलकल्प - ( भूमिका पृष्ठ ९ ), श्लोक १४०-१४५ पृष्ठ ११ २ - आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १७२ ३ – यह पृष्ठचम्पा भी चम्पा के निकट ही थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782