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तीर्थंकर महावोर
को दुखी होने का उल्लेख एक बौद्ध-ग्रन्थ मंजुश्रीमूलकल्प में भी मिलता है ।'
यदि कूणिक ने स्वयं हत्या की होती तो उसे इस प्रकार विलाप करने का कोई कारण नहीं था । इसी आत्मग्लानि के कारण कूणिक ने अपनी राजधानी राजगृह से बदल कर चम्पा कर ली थी।
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श्रेणिक की मृत्यु की कथा बड़े विस्तार से निरयावलिकासूत्र में आती है ।
यह श्रेणिक मर कर नरक गया और अगली चौवीसी में प्रथम तीर्थकर होगा । इस सम्बंधी स्वयं भगवान् महावीर ने सूचना दी थी ( देखिए, पृष्ठ ५१-५२ ) । नरक जाने का कारण स्पष्ट करते हुए देवविजय गणि-रचित पाण्डवचरित्र ( पृष्ठ १४७ ) में पाठ आता है
मांसात् श्रेणिकभूपतिश्च नरके चौर्याद् विनष्टा न के ?
तद्रूप ही उल्लेख सूक्तमुक्तावलि में भी है । हम उसका पाठ पृष्ठ १५४ पर दे चुके हैं। श्रेणिक का भावी तीर्थङ्कर जीवन विस्तार से ठाणांगसूत्र सटीक ठा० ९, उ० ३ सूत्र ६९३ पत्र ४५८-२ – ४६८-१ में आया है ।
साल
पृष्ठ चम्पा -- - नामक नगर में साल-नामक राजा राज्य करता था । उसका भाई महासाल था । वही युवराज पद पर था । इनके पिता का
१- ऐन इम्पीरियल हिस्ट्री आव इंडिया जयसवाल सम्पादित, मंजुश्री मूलकल्प - ( भूमिका पृष्ठ ९ ), श्लोक १४०-१४५ पृष्ठ ११ २ - आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १७२
३ – यह पृष्ठचम्पा भी चम्पा के निकट ही थी ।
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