Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 703
________________ भक्त राजे उनके सम्बन्ध में भरतेश्वर-बाहुबली-वृत्ति में आता है :तत्र तस्य राज्ञो राज्ञीनां शतमभूत । तासां मुख्या कलावती।' —अर्थात् उस राजा को १०० रानियाँ थीं। जिनमें कलावती मुख्य थी। और, उपदेशमाला सटीक में श्रेणिक की माँ का उल्लेख करते हुए लिखा है : सिरिवीर सामिणो अग्गभूमिभूयंमि रायगिह नयरे। आसि पसेणइ राया, देवी से धारिणी नाम ॥१॥ तग्गब्भसंभवो दब्भसुब्भसुब्भरजसोऽभिराम गुणो । पुहईसपसेणइणो तणुब्भवो सेणिो असि ॥२॥ इस गाथा से पता चलता है कि श्रेणिक की माता का नाम धारिणी था। और, प्रसेनजित के धर्म के संबंध में त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में आता है। श्रीमत्पार्श्वजिनाधीश शासनांभोजषट्पदः सम्यग्दर्शन पुण्यात्मा सोऽणुव्रतधरोऽभवत् ॥ -श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के शासन-रूप कमल में भ्रमर के समान सयम्कदर्शन से पुण्य हो वे अणुव्रतधारी थे। राजधानी जैन-ग्रन्थों में आता है कि मगध की प्राचीन राजधानी कुशाग्रपुर १-भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति, प्रथम विभाग, पृष्ठ २१-१ । २-उपदेश माला सटीक, पत्र ३३३ । ३-त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ८, पत्र ७१-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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