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तीर्थंकर महावीर में उन्हें विचार हुआ—“यदि मैं वेदना से मुक्त हो जाऊँ तो क्षमावान, दान्तेन्द्रिय और सर्व प्रकार के आरम्भ से रहित होकर प्रवजित हो जाऊँ ।” यह चिंतन करते-करते उन्हें नींद आ गयी और उनकी पीड़ा जाती रही। सबसे अनुमति लेकर वे प्रवजित हो गये ।
राजगृह के निकट मंडिकुक्षि में इन्होंने ही श्रेणिक को जैन-धर्म की ओर विशेष रूप से आकृष्ट किया था।
६. अभय—-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । ७. अर्जुन माली-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४८-४९ । ८. अलक्ष्य-राजाओं वाले प्रकरण में देखिए। ६. आनंद-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ९३ १०-अानन्द थेर-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ
११. आईक-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५४-६५
१२. इन्द्रभूति-देखिए तीर्थकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २६०२६९, ३६७ भाग २, पृष्ठ ३०७
जब गौतम स्वामी के शिष्य साल-महासाल आदि को केवलज्ञान हुआ तो उस समय गौतम स्वामी को यह विचार हुआ कि, मेरे शिष्यों को तो केवलज्ञान हो गया; पर मैं मोक्ष में जाऊँगा कि नहीं, यह शंका की बात है। गौतम स्वामी यह विचार ही कर रहे थे कि, गौतम स्वामी ने देवताओं को परस्पर बात करते सुना-"आज श्री जिनेश्वर देशना में कह रहे थे कि.
जो भूचर मनुष्य अपनी लब्धि से अष्टापद पर्वत पर जाकर जिनेश्वरों की • वंदना करता है, वह मनुष्य उसी भव में सिद्धि प्राप्त करता है।"
यह सुनकर गौतम स्वामी अष्टापद पर जाने को उत्सुक हुए और वहाँ जाने के लिए उन्होंने भगवान् से अनुमति माँगी। आज्ञा मिल जाने पर गौतम स्वामी ने तीर्थकर की वंदना की और अष्टापद की ओर चले ।
उसो अवसर पर कोडिन्न, दिन्न और सेवाल-नामक तीन तापस
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