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तीर्थंकर महावीर
१४ - ( देश - विशेष में प्रसिद्ध ) महाराजिक १५—पाँव में लगाने के लिए तेल दे तो वह पद्म है । १६ – भोजन बनाने को आग दे वह अग्नि है । १७ – चोर को पानी दे वह उदक है ।
१८ – चोर को डोर दे वह रज्जू है ।
(२) चोरी के लिए प्रेरणा करना भी एक अतिचार है
(३) तप्पाडरूवे - प्रतिरूप सदृश वस्तु मिलाना जैसे धान्य, तेल, केसर आदि में मिलावट करना । चोर आदि से वस्तु लेकर उसका रूप बदल देना भी इस अतिचार के अन्तर्गत आता है ।
(४) विरुद्ध रज्जाइकम्म-विरुद्ध राज्य में राजा की आज्ञा के बिना गमन करना |
(५) कूट- तुल- कूट- मान-माप-तौल गलत रखना ।
चौथे अणुव्रत के ५ अतिचार प्रवचनसारोद्धार में इस रूप में बताये गये हैं :
भुंजइ इतर परिग्गह १ मपरिग्गहियं थियं २ चउत्थवए । कामे तिव्वहिलासो ३ अरांगकीला ४ परविवाहो ॥ २७७॥ '
१. अपरि- गृहीतागमन - अतिचार – जो अपनी पत्नी न हो चाहे वह कन्या हो अथवा विधवा उससे भोग करना अपरिगृहीता अतिचार है ।
१ - प्रवचनसारोवार सटीक प्रथम भाग पत्र ७० - २ | ऐसा ही वर्णन उपासक दशांग में मी है :
...इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहियागमणे |
अणङ्गकीडा, परविवाह करणे, कामभोगा तिब्बाभिलासे ॥
- वासगदसा
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(वैद्य-सम्पादित ) पृष्ठ १०
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