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________________ ३८२ तीर्थंकर महावीर १४ - ( देश - विशेष में प्रसिद्ध ) महाराजिक १५—पाँव में लगाने के लिए तेल दे तो वह पद्म है । १६ – भोजन बनाने को आग दे वह अग्नि है । १७ – चोर को पानी दे वह उदक है । १८ – चोर को डोर दे वह रज्जू है । (२) चोरी के लिए प्रेरणा करना भी एक अतिचार है (३) तप्पाडरूवे - प्रतिरूप सदृश वस्तु मिलाना जैसे धान्य, तेल, केसर आदि में मिलावट करना । चोर आदि से वस्तु लेकर उसका रूप बदल देना भी इस अतिचार के अन्तर्गत आता है । (४) विरुद्ध रज्जाइकम्म-विरुद्ध राज्य में राजा की आज्ञा के बिना गमन करना | (५) कूट- तुल- कूट- मान-माप-तौल गलत रखना । चौथे अणुव्रत के ५ अतिचार प्रवचनसारोद्धार में इस रूप में बताये गये हैं : भुंजइ इतर परिग्गह १ मपरिग्गहियं थियं २ चउत्थवए । कामे तिव्वहिलासो ३ अरांगकीला ४ परविवाहो ॥ २७७॥ ' १. अपरि- गृहीतागमन - अतिचार – जो अपनी पत्नी न हो चाहे वह कन्या हो अथवा विधवा उससे भोग करना अपरिगृहीता अतिचार है । १ - प्रवचनसारोवार सटीक प्रथम भाग पत्र ७० - २ | ऐसा ही वर्णन उपासक दशांग में मी है : ...इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहियागमणे | अणङ्गकीडा, परविवाह करणे, कामभोगा तिब्बाभिलासे ॥ - वासगदसा Jain Education International (वैद्य-सम्पादित ) पृष्ठ १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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