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________________ श्रावक-धर्म ३८३ २. इत्वरोगमन अतिचार- - अल्पकाल के लिए भाड़े आदि पर किसी स्त्री की व्यवस्था करके भोग करना इत्वरीगमन अतिचार है । ३ अनंगक्रीड़ा अतिचार - काम की प्रधानता वाली क्रीड़ा । इसकी टीका करते हुए श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की टीका में आचार्य रत्नशेखर सूरि ने लिखा है :-- अधर दशन कुचमर्दन चुम्बनालिंगनाद्याः परदारेषु कुर्वतोऽनङ्गक्रीड़ा । अधर, दाँत, कुचमर्दन, चुम्बन, आलिंगन आदि परस्त्री के साथ करना अनंग क्रीड़ा है । श्रावक के लिए तो परस्त्री को देखना भी निषिद्ध है । पंचाशक में आता है : छन्नंगदंसणे फासणे गोमुत्तगद्दण कुसुमिरणे । जया सक्थ करे, इ दिन अवलोअ अ तहा ॥ १ ॥ परस्त्री के सम्बंध में श्रावक को ९ बात पालन करनी चाहिए :वसहि १ कह २ निसिज्जिं ३ दिअ ४ कुड्डु तर ५ पुव्वकीलिअ ६ पणीए ७ । अइमायाहार ८ विभूसणा ९ नव बंभगुत्तीओ ॥ १ स्त्री की वसति में नहीं रहना चाहिए १ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र ८३-१, यहाँ जो 'आदि' शब्द है उसका अच्छा स्पष्टीकरण कल्पसूत्र की संदेहविषौषधि टीका से हो जाता है : आलिंगन १. चुंबन २, नखच्छेद ३, दशनच्छेद ४, संवेशन ५; सीत्कृत ६, पुरुषायित ७, परिष्ट ८ कानाम् श्रष्ट -पत्र १२५ प्रवचनसारोद्धार की टीका में ( भाग १, पत्र ७४- १ ) इसका विस्तार से विवेचन हैं । २ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र ८३ - २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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