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श्रावक-धर्म
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२. इत्वरोगमन अतिचार- - अल्पकाल के लिए भाड़े आदि पर किसी स्त्री की व्यवस्था करके भोग करना इत्वरीगमन अतिचार है ।
३ अनंगक्रीड़ा अतिचार - काम की प्रधानता वाली क्रीड़ा । इसकी टीका करते हुए श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की टीका में आचार्य रत्नशेखर सूरि ने लिखा है :--
अधर दशन कुचमर्दन चुम्बनालिंगनाद्याः परदारेषु कुर्वतोऽनङ्गक्रीड़ा । अधर, दाँत, कुचमर्दन, चुम्बन, आलिंगन आदि परस्त्री के साथ करना अनंग क्रीड़ा है ।
श्रावक के लिए तो परस्त्री को देखना भी निषिद्ध है । पंचाशक में आता है :
छन्नंगदंसणे फासणे
गोमुत्तगद्दण कुसुमिरणे । जया सक्थ करे, इ दिन अवलोअ अ तहा ॥ १ ॥ परस्त्री के सम्बंध में श्रावक को ९ बात पालन करनी चाहिए :वसहि १ कह २ निसिज्जिं ३ दिअ ४ कुड्डु तर ५ पुव्वकीलिअ ६ पणीए ७ । अइमायाहार ८ विभूसणा ९ नव बंभगुत्तीओ ॥
१ स्त्री की वसति में नहीं रहना चाहिए
१ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र ८३-१,
यहाँ जो 'आदि' शब्द है उसका अच्छा स्पष्टीकरण कल्पसूत्र की संदेहविषौषधि टीका से हो जाता है :
आलिंगन १. चुंबन २, नखच्छेद ३, दशनच्छेद ४, संवेशन ५; सीत्कृत ६, पुरुषायित ७, परिष्ट ८ कानाम् श्रष्ट
-पत्र १२५ प्रवचनसारोद्धार की टीका में ( भाग १, पत्र ७४- १ ) इसका विस्तार से विवेचन हैं ।
२ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र ८३ - २
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