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________________ तीर्थकर महावीर २ स्त्री-कथा' नहीं कहनी चाहिए ३ परस्त्री के आसन पर नहीं बैठना चाहिए ४ स्त्री की इन्द्रियाँ नहीं देखनी चाहिए ५ ऐसी जगह सोना चाहिए, जहाँ से परस्त्री की आवाज दीवाल पार करके न सुनायी दे। ६ परस्त्री के साथ यदि पहले क्रीड़ा की हो तो उसे स्मरण नहीं करना चाहिए। ७ कामवृद्धि वाला पदार्थ न खाना चाहिए । ८ अधिक आहार न खाना चाहिए । ९ परस्त्री में मोह उपजे ऐसा शृंगार नहीं करना चाहिए । ४ परविवाहकरण अतिचार-दूसरे के पुत्र-पुत्री का विवाह कराना ५ कामभोगतीव्रानुराग अतिचार--काम-विषयों में विशेष आसक्ति कामभोगतीव्रानुराग अतिचार है। अन्य कार्यों की ओर ध्यान कम करके कामभोग सम्बन्धी बातों पर अधिक अनुराग रखना। ५-वें अणुव्रत स्थूल परिग्रह विरमण के ५ अतिचार हैं। प्रवचनसारोद्धार में उनके नाम इस प्रकार दिये हैं : १-स्थानांग सूत्र में ४ विकथाएँ बतायी गयी हैं। उसमें १ स्त्रीकथा भी है। स्त्रीकथा ४ प्रकार की बतायी गयी है -१ स्त्री की जाति-सम्बंधी कथा, २ स्त्री के कुल की कथा, ३ स्त्री के रूप की कथा, ४ स्त्री के वेप की कथा, उक्त टीका में स्त्री कथा में दोष बताते हुए लिखा है : अायपरमोहुदीरणं उड्डाहो सुत्तमाइपरिहाणी। बंभवयस्स अगुत्ती पसंगदोसा य गमणादी ॥ -ठाणांगसूत्र सटीक, पूर्वार्ध, पत्र २१०-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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