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श्रावक-धर्म जोएइ खेत्तवत्थूणि १ रुप्प कणयाइ देइ सयणाणं २ । धणधन्नाइपरघरे बंधह जा नियम पज्जंतो।'
१. धनधान्य परिमाण अतिक्रम अतिचार-इच्छा-परिमाण से अधिक धनधान्य की कामना और व्यवहार धनधान्य परिमाण अतिक्रम अतिचार है। इनमें से धान्य को हम पहले लेते हैं। भगवतीसूत्र में निम्नलिखित धान्यों के नाम आये हैं:--
१. शाली, २ व्रीहि, ३ गोधूम, ४ यव ५ यवयव, ६ कलाय, ७ मसूर, ८ तिल, ९ मुग्ग, १० माघ, ११ निफाव (वल्ल), १२ कुलत्थ, १३ आलिसंदग, (एक प्रकार का चवला), १४ सतीण ( अरहर ) १५ पलिमंथग ( गोल चना), १६ अलसी, १७ कुसुंभ, १८ कोद्रव, १९ कंगु, २० वरग २१ रालग (कंगु विशेष ), २२ कोदूसग ( कोदो विशेष), २३ शण २४ सरिसव, २५ मूलगबीय (मूलक बीजानि)
दशवैकालिक की नियुक्ति में निम्नलिखित २४ धान्य गिनाये गये हैं:
धन्नाइ चउव्वीसं जव १ गोहुम २ सालि ३ वीहि ४ सट्टी आ। कोद्दव ६, अणुया ७, कंगु ८, सलग ६, तिल १०, मुग्ग ११, मासा १२ य॥ अयसि १३ हरिमन्थ १४ तिउडग १५ निप्फाव १६ सिलिंद १७ रायमासा १८ ।
१--प्रवचनसारोद्धार पूर्वाद्ध, पत्र ७०-२। ऐसा ही उल्लेख उवासवादसानो में भी है :
खेत्तपत्थुपमाणाइकम्मे, हिरण्णसुवएणपमाणाइकम्मे, दुपयचउपायपमाणाइ कम्मे, धणधन्तपमाणाइ कम्मे कुवियपभाणाइकम्मे ।
-( उवासवादसाओ, वैद्य-सम्पादित पृष्ठ १०) २-भगवतीसूत्र, शतक ६, उद्देसा ७, पत्र ४६८-४६६ । देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ३३-३५ ।
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