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तीर्थंकर महावीर इक्खू १६, मसूर २०, तुवरी २१, कुलत्थ २२ तह २३ धन्नगकलाया। .. यही गाथा श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्र की टीका में भी ज्यों-की-त्यों दी हुई है।
वृहत्कल्पभाष्य में धान्यों की संख्या १७ बतायी गयी है । और । उसकी टीका में टीकाकर ने उन्हें इस प्रकार गिनाया है :
बीहिर्यवो मसूरो, गोधूमो मुद्ग-माष तिल चणकाः । प्रणवः प्रियङगु कोद्रवमकुप्टकाः शालि राढक्यः । किञ्च कलाय कुलत्थौ शणसप्तदशानि बीजानि।' प्रवचनसारोद्धार की टीका में भी यही गाथा ज्यो, की त्यों, दी हुई हैं। प्रज्ञापनासूत्र सटीक में धान्यों की गणना इस प्रकार दी है :
साली वीही गोहुम जवजवा कलम मसूर तिल मुग्ग मास णिप्फाव कुलत्थ पालिसंदसतीण पलिमंथा अयसी कुसुम्भ कोदव कंगूरालगमास कोहसा सणसरिसव मूलिगबीया"
गाथासहस्री में निम्नलिखित धान्यों के नाम गिनाये गये हैं:१ गोहुम, २ साली, ३ जवजव, ४ जवाइ, ५ तिल, ६ मुम्ग, ७ मसूर, ८ कलाय, ९ मास, १० चवलग, ११ कुलत्थ, १२ तुवरी, १३ वट्टचणर्ग,
१-दशवकालिकमूत्र हरिभद्र की टीका सहित (देवचंद-लालभाई) पत्र १६३-१ २-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र ६६-२। ३-... सणसतरसा बिया भवे धन्नं ......
उ० १, गाथा ८२८, भाग २, पृष्ठ २६४ । ४-वृहत्कल्प भाप्य टीका सहित, भाग २, पष्ठ २६४ । ५-प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध पत्र ७५-१ । ६-पत्र ३३-१। ७-कलाय-त्रिपुटाख्य थान्य विशेषः-गाथासहस्री, पृष्ठ १६ । ८-वडचणकाः-शिखारहिता वृत्तकाराश्चरणकविशेषाः-वही, पृष्ठ १६ ।
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