________________
श्रावक-धर्म
३८७ १४ वल्ला, १५ अइसी, १६ लट्टा', १७ कंगू', १८ कोडीसग, १९, सण २० वरट्ट, २१ सिद्धत्थ, २२ कुद्दव, २३ रालग, २४ मूलबीयग।
संसक्तनियुक्ति में धान्यादि के वर्णन में उल्लेख है । कुसाणाणि अचउसट्ठी कूरे जाणाहि एगतीसं च । नव चेव पाणायाइतीसं पुण खज्जया हुँति ।।
-अर्थात् कुसिण (धान्य ) ६४ प्रकार के, कर ( चावल ) ३१ प्रकार के, पान ९ प्रकार के और खाद्य ३० प्रकार के बताये गये हैं ।
धन-जैन-शास्त्रों में धन ४ प्रकार के कहे गये हैं गणिम १ धरिम २ मेय ३ परिच्छेद्य ४ ।।
(१) गणिम-जिसका लेन-देन गिनकर हो। अणुयोगद्वार की टीका में आता है।
१-लट्टा-कुसुम्भपीत-वही, पृष्ठ १६ । २-कंग-तन्दुलाः कोद्रव विशेषः-वही, पृष्ठ १६ । ३--शणं त्वप्रधानं-वही, पृष्ठ १६ । ४-बरदृत्ति बरटी इति प्रसिद्धं-वही, पृष्ठ १६ । ५-वही, पृष्ठ १६ । ६-श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र सटीक पत्र १००-२ ।
७-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र १००-२। प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्धं पत्र ७५-१ तथा कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित पत्र २०२ में इस सम्बन्ध में एक गाथा दी गयी है:
गणिम जाईफलफोफलाई धरिमं तु कुंकुम गुडाई ।
मेयं चोप्पडलोणाइ रयण बत्थाइ परिच्छेज्जं ॥ ये चार नाम नायाधम्मकता में भी आये है "गणिमं, धारिमं च, मेज्जं च, परिच्छेज्जं च"
-झाताधर्मकथा सटीक, अ०८, पत्र १३६-१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org