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________________ श्रावक-धर्म ३८१ भलनं १ कुशलं २ तर्जा ३, राजभागो ४ ऽवलोकनम् ५। अमार्गदर्शनं ६, शय्या ७, पदभङ्ग ८ स्तथैव च ॥१॥ विश्रामः ६ पादपतनं १० वासनं ११ गोपनं १२ तथा । खण्डस्य खादनं १३ चैव तथाऽन्यमाहराजिकम् ॥२॥ पद्या १५ ग्नु १६ दक १७ रज्जूनां १८ प्रदानं ज्ञानपूर्वकं । एताः प्रसूतयो शेया अष्टादश मनीषिभिः ॥३॥' १-तुम डरो नहीं, मैं साथ मैं हूँ, ऐसा उत्साह दिलाने वाला भलज हैं। २-क्षेमकुशलता पूछने वाला कुशल है । ३-उंगली आदि की संज्ञा से जोसमझावे वह तर्जा है । ४—राज्य का कर-भाग छिपाये वह राजभाग है। ५-चोरी किस प्रकार हो रही है, उसे देखे वह अवलोकन है। ६-चोर का मार्ग यदि कोई पूछे और उसे बहका दे तो वह श्रमार्ग दर्शन है। ७-चोर को सोने का साधन दे तो वह शय्या है। ८-चोर के पदचिह्न को मिटा देना पदभंग है। ९–विश्राम-स्थल दे वह विश्राम है। १०—महत्त्व की अभिवृद्धि करने वाला प्रणाम आदि करे तो वह पादपतन है। ११-आसन दे तो वह श्रासन है। १२—चोर को छिपाये तो वह गोपन है । १३-अच्छा-अच्छा भोजन पानी दो खण्डदान है। १--प्रश्न व्याकरणम् सटीक पत्र ५८-२ । ऐसा ही उल्लेख श्रीश्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र ( अपरनाम अर्थदीपिका ) पत्र ७२-१ में भी है। देखिए श्राद्धप्रतिक्रम वंदिणत्रुसूत्र ( बड़ौदा ) पृष्ठ १६५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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