SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८० तीर्थंकर महावीर चोराणीय १ चोरपयोगंज २ कूडमाणतुलकरणं ३ । रिउरज्जव्वहारो ४ सरिसजुइ ५ तइयवयदोसा ॥२७६॥' (१) चोराणीय-चोर का माल लेना । श्रीश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की वृत्ति में आता है चौरश्चौरायको मंत्री, भेदज्ञः काणककयो। अन्नदः स्थानदश्चेति चौरः सप्तविधः स्मृतः ॥ चोर, चोरी करनेवाला, चोर को सलाह देनेवाला, चोर का भेद "जानने वाला, चोरी का माल लेने और बेचने वाला, चोर को अन्न और स्थान देने वाले ये सात प्रकार के चोर हैं। प्रश्नव्याकरण सटीक में १८ प्रकार के चोरों का वर्णन किया गया है। १-प्रवचनसारोद्धार, भाग १, पत्र ७०-२ उवासगदसाओ में उनका इस प्रकार उल्लेख है : तेणाहडे, तक्करप्पनोगे, विरुद्धरज्जाइकम्मे, कूडतुल्लकूडमाणे, तप्पडि रूवगववहारे -उवासगदसाओ, वैद्य-सम्पादित, पृष्ठ १. २-श्रीश्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्रम् अपरनाम अर्थदीपिका पत्र ७१।१।। ३- उत्तराध्ययन अध्ययन ६ गाथा २८ में ४ प्रकार के चोर बताये गये हैं : श्रमोसे लोमहारे न गंठिभोए अतकरे" इसकी टीका करते हुए भावविजय ने लिखा है :(अ) प्रासमन्तात् मुष्णन्तीत्यामोषाश्चौरास्तान् (आ) लोमहारा ये निर्दयतया स्वविधात शङ्कया च जन्तून हत्वैव सर्वस्वं हरन्ति तांश्च (इ) ग्रंथिभेदा ये घुघुरककर्तिकादिना ग्रंथिं भिन्दन्ति तांश्च (ई) तथा तस्करान् सर्वक्ष चौर्यकारिणो दि...... पत्र २२४-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy