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________________ १३२ तीर्थङ्कर महावीर उस मेंढिय ग्राम में रेवती - नामक गाहावइणी ( गृहपति की पत्नी ) रहती थी । वह बड़ी ऋद्धिवाली थी । भगवान् जब साणकोष्ठक चैत्य में थे, उसी समय पीड़ाकारी अत्यन्त दाह करने वाला पित्तज्वर हुआ, ( पृष्ठ १३१ की पादटिप्पणि का शेषांश ) मालुका नाम एकास्थिका वृक्षविशेषाः । - पत्र १२६६ 'मालुया कच्छ' शब्द ज्ञाताधर्मकथा सटीक में भी आया हैं । वहाँ 'माया' की टीका करते हुए लिखा है एकास्थि फलाः वृक्ष विशेषाः मालुकाः प्रज्ञापनाभिहितास्तेषां कक्षो गहनं मालुका कक्षः, चिर्भटिका कच्छुकः इति । वृक्ष है -: -२, ३७ पत्र ८४-१ प्रज्ञापनासूत्र सटीक [ पत्र ३१-२ ] में लिखा है कि यह देश-विशेष का " मालुको देश विशेष प्रतीतौ ।” २ - ' कक्ष' पर टीका करते हुए भगवती के टीकाकार ने लिखा है यत्कक्षं गहनं तत्तथा भगवान् को महान् जिसकी पीड़ा सहन - पत्र १२६६ वह ' कक्ष' शब्द भगवतीसूत्र [ शतक १,३०८ ] में भी आया है । वहाँ टीकाकार ने लिखा है 'कच्छे' नदी जलपरिवेष्टिते वृत्तादिमति प्रदेशे । दानशेखरगणि ने अपनी टीका में लिखा है"नदी जल परिवेष्टिते वल्ल्यादि मिति प्रदेशे " Jain Education International - : आचारांग सूत्र श्रु० २ ० ३ में कक्ष की टीका इस प्रकार दी है नद्यासन्न निम्नप्रदेशे मूलकवालुङ्कादिवाटिकायां । For Private & Personal Use Only - पत्र १६२ — पत्र ३६ www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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