________________
सद्दालपुत्र श्रावक हुआ
७१
सुनक्षत्र को दीक्षा काकन्दी की भगवान् की इसी यात्रा में सुनक्षत्र ने भी दीक्षा ली। इसकी माता का नाम भद्रा था। दीक्षा लेने के बाद इसने भी सामायिक आदि तथा ११ अंगों का अध्ययन किया और वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर अनशन करके मृत्यु को प्राप्त हुआ और सार्थसिद्ध विमान पर गया ।'
कुण्डकोलिक का श्रावक होना काकंदी से विहार कर भगवान् काम्पिल्यपुर पधारे। उनके समक्ष कुण्डकोलिक ने श्रावक-व्रत ग्रहण किया। इसका विस्तृत विवरण हमने मुख्य श्रावकों के प्रसंग में किया है ।
सद्दालपुत्र श्रावक हुआ वहाँ से ग्रामानुग्राम विहार कर भगवान् पोलासपुर आये और उनके समक्ष सद्दालपुत्र ने श्रावक-व्रत ग्रहण किया। मुख्य श्रावकों के प्रसंग में उसका विस्तृत विवरण है।
पोलासपुर से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् वाणिज्यग्राम आये और अपना वर्षावास भगवान् ने वैशाली में बिताया ।
आयंबिल ऊपर के विवरण में 'आयंबिल' शब्द आया है। इसका संस्कृत रूप आचाम्ल होता है। आचार्य हरिभद् सूरि ने अपने ग्रंथ संबोध-प्रकरण में उसके निम्नलिखित पर्याय किये हैं :
अंबिलं नीरस जलं दुप्यायं धाउ सोसणं
कामग्घं मंगलं सोय एगट्ठा अंबिलस्सावि ॥ १-अणुत्तरोववाइयसूत्र ( मोदी-सम्पादित ) वर्ग ३, पृष्ठ ८२-८३ । इसका उल्लेख ठाणांगमूत्र सटीक ठाणा १०, उद्दशा ३ सूत्र ७५५ पत्र ५०६-१ तथा ५१०-१ में भी आता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org