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श्री वामस्थली तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री शीतलनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 150 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल वंथली गाँव के आजाद चौक में प्राचीनता आज का वंथली गांव पूर्वकाल में देवस्थली, वामस्थली आदि नामों से विख्यात था । यहाँ पर जगह-जगह पर स्थित प्राचीन भग्नावशेषों से पत्ता चलता है कि किसी समय यह अतीव जाहोजलालीपूर्ण विराट नगरी रही होगी । यहाँ पर अनेकों धर्मचुस्त जैन श्रावकगण हुवे का संकेत मिलता है ।
बारहवीं सदी में हुवे महाराजा श्री सिद्धराज जयसिंह के मंत्री क्रियाशील, व्रतधारी श्रावक श्री सज्जन शेठ की भी यह जन्म भूमि है । इन्होंने अपने जीवन काल में श्री गिरनार तीर्थ के जीर्णोद्धार करवाने में भाग लिया या वि. सं. 1185 में श्री शंखेश्वर तीर्थ का भी इनके द्वारा जीर्णोद्धार हुआ ऐसा उल्लेख है । उसी समय यहाँ के श्रेष्ठी श्री साकरिया द्वारा यहाँ जिन मन्दिर बनवाने व गिरनार पर श्री नेमीनाथ प्रभु को हीरों पन्नों का हार बनवाकर पहनाने का भी उल्लेख मिलता है ।
वि. सं. 1675 में श्री शत्रुंजय महातीर्थ की चौमुखजी ट्रैक पर बने मन्दिर (जो सवासोमा के नाम से विख्यात हैं) के निर्माता श्रावक श्री सवचन्द शेठ की
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श्री शीतलनाथ भगवान जिनालय वामस्थली
भी यही जन्म भूभि है। इनका इतिहास भी गौरवमयी है ।
यहाँ पर जगह-जगह स्थानों पर व निकट की ओसम पहाड़ी पर उपलब्ध प्राचीन खण्डहर मन्दिरों व ध्वंसावशेषों से लगता है कि यहाँ के श्रेष्ठीगणों ने अनेकों मन्दिरों का निर्माण करवाया होगा ।
परन्तु आज यहाँ सिर्फ दो मन्दिर विद्यमान है । इस मन्दिर के मूलनायक श्री शीतलनाथ प्रभु की विशालकाय प्राचीन प्रतिमा अत्यन्त भावात्मक व चमत्कारिक है । प्रतिमाजी की कलाकृति से महसूस होता है कि यह प्रतिमा श्री सम्प्रति राजा द्वारा भरवाई हुई है । श्री सम्प्रति राजा द्वारा अनेकों जगह मन्दिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई जाने का उल्लेख आता है अतः यहाँ जगह-जगह पर अनेकों प्राचीन कलात्मक खण्डहर ध्वंसावशेषों को देखने से लगता है श्री सम्प्रति राजा ने यहाँ पर भी मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री शीतलनाथप्रभु की यह भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई होगी । मन्दिर का नवनिर्माण होकर वि. सं. 1971 में पुनः प्रतिष्ठा चमत्कारिक घटनाओं के साथ सुसम्पन्न हुई ।
विशिष्टता यहाँ के धर्मचुस्त आवक व श्रेष्ठीगणों द्वारा धर्मप्रभावना व उत्थान हेतु समय-समय पर किया गया कार्य ही यहाँ का गौरवमयी इतिहास है, जो यहाँ की मुख्य विशेषता है। कुछ प्रमुख श्रेष्ठीगणों द्वारा किये गये कार्य का संक्षिप्त विवरण ऊपर प्राचीनता में दिया जा चुका है ।
अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में एक और मन्दिर हैं ।
प्राचीन प्रभु प्रतिमाएँ
कला और सौन्दर्य अतीव भावात्मक व दर्शनीय है । यहाँ के श्री पद्मप्रभु भगवान के मन्दिर में भूतल से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ भी अतीव चमत्कारिक मनमोहक व दर्शनीय है। गांव में जगह-जगह उपलब्ध प्राचीन कलात्मक अवशेष भी देखने योग्य है ।
मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जूनागढ़ 15 कि. मी. दूर है। जहाँ से टेक्सी, बस व आटो की सुविधा है। यहाँ पर भी टेक्सी व आटो की सुविधा उपलब्ध है ।
यहाँ से प्रभाषपाटण लगभग 80 कि. मी. अजाहरा 160 कि. मी. व पालीताना 230 कि. मी. है दूर नजदीक का हवाई अड्डा राजकोट 125 कि. मी. है ।
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