Book Title: Tirth Darshan Part 3
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 232
________________ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय-उन्हेल यह तीर्थ दसवीं सदी पूर्व का है । कुछ अवशेष गुप्तकालीन भी पाये जाते है जो प्राचीनता को सिद्ध करते हैं । सब स्थानों की भाँति इस तीर्थ का भी अनेकों बार जीर्णोद्धार हुआ होगा । अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1700 में उन्हेल श्री संघ द्वारा करवाया गया था । अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम चालू है । विशिष्टता यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र तो है ही । साथ-साथ अतिशय क्षेत्र भी है । कहा जाता है कभी-कभी पर्व-तिथि के समय रात्री में मन्दिर में भजनों की संगीत लहरी सुनाई देती है । प्रतीत होता है जैसे प्रभु की आरती उतारी जा रही हो । कुछ वर्षों पूर्व प्रभु के नेत्रों में से अमृत रूपी धारा बहती रही । कुछ भक्तों ने नेत्र को साफ करके भी देखा परन्तु धारा प्रवाह चालू रही । जो बाद में अक्समात बन्द हुई । कहा जाता है कि आराधना करने पर भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । अनेकों तरह की चमत्कारिक घटनाएँ घटने के संकेत मिलते हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य प्रभु प्रतिमा की कला अद्वितीय है । सप्त-फणों के साथ दोनों ओर इन्द्र महाराज की प्रतिमाएँ हैं जो संभवतः अन्यत्र नहीं है। मार्ग दर्शन यह स्थल उज्जैन-नागदा मार्ग में उन्हेल रेल्वे स्टेशन से 10 कि. मी. दूर है, जहाँ पर टेक्सी का साधन उपलब्ध है । उज्जैन से लगभग 30 कि. मी. नागदा से 22 कि. मी. व नागेश्वर तीर्थ से 75 कि. मी. दूर है । उज्जैन व नागदा जंक्शन से बस व टेक्सी का साधन है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है,जहाँ पानी,बिजली,बर्तन आदि की सुविधाएँ उपलब्ध है।पूर्व सुचना पर भोजन व भाते की सुविधा हो सकती है । पेढ़ी श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ की पेढ़ी, जैन मन्दिर रोड़, पोस्ट : उन्हेल - 456 221. जिला : उज्जैन, प्रान्त : मध्यप्रदेश, फोन :07366-20258 व 20237 पी.पी. श्री उन्हेल तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 105 से. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल उन्हेल गाँव के मध्य जैन मन्दिर गली में । प्राचीनता इस गाँव का प्राचीन नाम तोरण था। कहा जाता है जब नागदा में श्री जन्मेजय ने नाग-यज्ञ किया था उस समय चारों दिशाओं में तोरण द्वार बांधे गये थे तब एक तोरण इस स्थान पर भी बाँधा गया था । और यहाँ नगर बस जाने के परिणाम स्वरूप इसका नाम तोरण पड़ गया था । वर्तमान नाम मुसलमान काल में परिवर्तन किया गया होगा, ऐसा प्रतीत होता है। प्रतिमा की कलाकृति व मन्दिर में उपलब्ध 10वीं व 11वीं सदी के अवशेषों से यह प्रमाणित होता है कि 708

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