Book Title: Tirth Darshan Part 3
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 230
________________ TRALIA से इस तीर्थ का अनेकों बार उत्थान पतन हुआ व समय-समय पर शासन प्रभावक आचार्य भगवन्तों ने अपनी अमूल्य शक्ति का सदुपयोग करके इस तीर्थ की महिमा बढ़ायी जो उल्लेखनीय है । विशिष्टता चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय यहाँ के राजा श्री चन्द्र प्रद्योत ने प्रभु वीर की प्रतिमा चन्दन में बनवायी थी । राजा श्री चन्द्रप्रद्योत द्वारा यहाँ मन्दिर निर्माण करवाकर इस चन्दन की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाने का भी उल्लेख है । इसके दर्शनार्थ आर्य सुहस्तीसूरिजी का यहाँ आवागमन होता रहता था, उन्होंने राजा संप्रति, अवन्तीसुकुमाल, महाकाल आदि को यहीं पर प्रतिबोधित किया था । शासन प्रभावक आचार्य चन्द्ररुद, आर्य रक्षितसूरि,श्री चन्द्रगुप्त, आर्य आषाढ़ इत्यादियोंने समय-समय पर यहाँ रहकर धर्म प्रभावना बढ़ायी थी । कालक्रम से जब इस तीर्थ पर शैवमत के शासकों का अधिकार हुआ, तब विक्रमादित्य राजा की राज्य सभा के विद्वान रत्न धर्म प्रभावक आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर ने राजा के सम्मुख श्री कल्याण मन्दिर स्तोत्र की रचना की जिसके प्रभाव से मन्दिर में स्थित ज्येतिर्मय शिवलिंग में से यह श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मनोहर प्रतिमा पुनः प्रकट हुई और जैन धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ी । विक्रम की सातवीं सदी में आचार्य श्री मानतुंगसूरिजी ने यहीं पर बृहद् राजा भोज को भक्तामर स्त्रोत्र की रचना द्वारा चमत्कार दिखाकर प्रभावित किया था । ग्यारहवीं सदी में श्री शान्तिसूरि जी विद्या प्रिय परमार वंशी राजा भोज की राज्य सभा में 84 वादियों को जीतकर यहीं पर सुसम्मानित हुए थे । इस भांति जैन धर्म के प्रचार व प्रसार सम्बन्धी अनेकों घटनाएँ इस तीर्थ से जुड़ी हुई है । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ती है व पौष कृष्णा 10 को मेले का आयोजन होता है । अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त अन्य 24 मन्दिर विद्यमान है । कला और सौन्दर्य इस तीर्थ का अनेकों बार उत्थानपतन होने के कारण प्राचीन कला कम नजर आती है । लेकिन प्रभु पार्श्व की प्राचीन प्रतिमा अति ही सौम्य है । मार्ग दर्शन मन्दिर से लगभग 12 कि. मी. की दूरी पर प्रमुख रेल्वे स्टेशन उज्जैन है जहाँ पर श्री अवन्ती पार्श्वप्रभु मन्दिर का प्रवेशद्वार श्री अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, अर्द्ध पद्मासनस्थ, लगभग 1.2 मीटर (चार फुट) (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल उज्जैन शहर में क्षीप्रा नदी के निकट । प्राचीनता इस नगरी के प्राचीन नाम अवन्तिका, पुष्कर रजिनी आदि थे । जैन शास्त्रानुसार भद्रा सेठाणी के सुत्रुत्र अवन्तीसुकुमाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी से प्रतिबोध पाकर दीक्षा अंगीकार की व जंगल में संथारे में रहते हए तपश्चर्या में ही मक्ति पद को प्राप्त हाए। उनके पुत्र श्री महाकाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी के सदुपदेश से अपने पिताजी के स्मरणार्थ इस भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया । यह वृत्तान्त वीर निर्वाण संवत् 250 का माना जाता है । तत्पश्चात् कालक्रम 706

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