Book Title: Tirth Darshan Part 3
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 242
________________ प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है । इसी गुफा में श्री शीतलनाथ प्रभु की व श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएँ भी अतीव प्रभाविक है । उपरोक्त स्थापत्य के अलावा भी यहाँ पर, व, यहाँ के निकटवर्ती स्थानों में, जगह-जगह प्राचीन मन्दिरों व मूर्तियों के भग्नावशेष नजर आते हैं । हाल ही में यहाँ उदयगिरि पहाड़ी के निकट उत्थखनन के समय अजोड़ जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं । इसके निकट के स्थावर्त पर्वत पर आर्य वज्रस्वामी अपने 500 शिष्यों के साथ निर्वाण पद को प्राप्त होने का उल्लेख है । ऐसे महत्वपूर्ण स्थान पर अनेकों जिन मन्दिरों का निर्माण समय-समय पर हुवा ही होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु आज उन प्राचीन मन्दिरों के कुछ भग्नावशेष मात्र इधर-उधर नजर आते हैं, कालक्रम से उन्हें क्षति पहुँची होगी व कई भूमीगत हुवे होंगे, जैसा, अन्य कई जगहों पर पाया जाता है । वर्तमान स्थित मन्दिरों में श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान का श्वे. मन्दिरों में व श्री शीतलनाथ भगवान का दिगम्बर मन्दिरों में प्राचीनतम माना जाता है । 718 विशिष्टता इस पावन स्थल पर एक मान्यतानुसार प्रभु शीतलनाथ भगवान के (च्यवन, जन्म व दीक्षा) तीन कल्याणक होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता है । इस भूमि में श्री महावीर प्रभु का भी चातुर्मास हुवा। प्रभु की प्रतिमा भी जीवितस्वामी के रूप में यहाँ रही, अतः यह भी यहाँ की महान विशेषता है । यहाँ प्राचीन गुफाओं में प्राचीन प्रभु प्रतिमाओं के दर्शन होना यह भी मुख्य विशेषता में है । भारत में कुछ ही पहाड़ों पर प्राचीन गुफाएँ हैं, जहाँ ऐसी कलात्मक प्राचीन प्रभु प्रतिमाएँ आदि दर्शनीय है । आर्य वज्रस्वामी का अपने 500 शिष्यों के साथ यहाँ स्वर्गारोहण को प्राप्त होना भी इस भूमि की महानता है । विदिशा से 30 कि. मी. दूर ग्यारसपुर में तथा 70 कि. मी. दूर बड़ोहह पठारी में प्राचीन जैन मन्दिर हैं जो केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के आधीन हैं । अन्य मन्दिर वर्तमान में इनके अतिरिक्त एक श्री वासुपूज्य भगवान का श्वे. मन्दिर व 10 दि. मन्दिर है । कला और सौन्दर्य यहाँ पर गुफाओं म प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ अतीव दर्शनीय हैं । गुफाओं श्री मुनिसुव्रतस्वामी जिनालय (श्वे) - विदिशा

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