Book Title: Tirth Darshan Part 3
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 252
________________ श्री नैनागिरि तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, बादामी वर्ण, पद्मासनस्थ, खड्गासन 335 सें. मी. (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल छोटे से रेषन्दीगिरि गाँव के निकट के एक साधारण ऊँची पहाड़ी पर । प्राचीनता यह तीर्थ पार्श्वनाथ भगवान के समय का बताया जाता है । लेकिन सदियों तक यह तीर्थ अलोप रहा व लगभग दो सौ वर्ष पूर्व एक भक्त को आये स्वप्न के आधार पर इस पर्वत पर खुदाई करायी गयी । वहाँ पर एक प्राचीन मन्दिर भूगर्भ से निकला जो पार्श्वनाथ मन्दिर कहलाता है । मन्दिर की दीवार पर उत्कीर्ण एक शिलालेख में सं. 1109 में इस मन्दिर के निर्माण होने का उल्लेख मिलता है । भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ भी इसी काल की बतायी जाती है । विशिष्टता कहा जाता है कि पार्श्वनाथ भगवान का समवसरण यहाँ भी हुआ था व समवसरण में स्थित मुनीन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, वरदत्त, गुणदत्त व सारदत्त मुनियों ने यहीं पर तप करके निर्वाण प्राप्त किया था। इन पाँचों मुनियों की मूर्तियाँ भी इसी श्री पार्श्वप्रभु की अलौकिक प्राचीन प्रतिमा श्री नैनागिरि मन्दिर समूहों का दृश्य-श्री नैनागिरि 728

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