Book Title: Tirth Darshan Part 3
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 246
________________ श्री थुवौनजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, खड्गासन, लगभग 9.14 मी. ( 30 फुट) (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल बुन्देलखंड की पावन तीर्थ श्रंखला में उर्वणी और लीलावती इन युगल सरिताओं के मध्य विंध्याचल पर्वतमाला की गोद में बसा युवौनजी गांव में । प्राचीनता यहाँ प्राप्त अवशेषों से ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि किसी समय यहाँ एक विशाल नगरी रही होगा व अनेकों जिन मन्दिर रहे होंगे । सेठ श्री पाना शाह के द्वारा 12वीं शताब्दी में यहाँ मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । अन्य मन्दिर इसके बाद क्रमशः बने हैं। इससे प्रतीत होता है कि सदियों तक यहाँ जाहोजलाली रही । विशिष्टता इस भाँति की बनावट के मन्दिर भारत में अन्यत्र नहीं मिलेंगे, जहाँ प्रतिमाएँ शिखर से बड़ी हो । मन्दिर के प्रवेश द्वार से प्रभु की पूर्ण प्रतिमा का दर्शन होना सम्भव नहीं है । क्योंकि प्रभु प्रतिमा 722 का लगभग आधा भाग प्रवेश द्वार की सतह से नीचा है । ऐसा लगता है कि पहले मूर्ति की स्थापना कर, बाद में शिखर बनवाये गये हैं । कहा जाता है कि फाल्गुन, आषाढ़ श्रावण तथा भादों माहों की अर्ध रात्रि में, मन्दिरों में कभी-कभी देवों द्वारा भक्ति से परिपूर्ण, सुमधुर गीतों की स्वर लहरी सुनायी देती है । आस-पास के ग्रामीण लोग यहाँ आकर श्रद्धा और भक्ति के साथ फल-फूल चढ़ाते हैं । उनके कथानुसार यहाँ आकर मनौती मानने से उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । अन्य मन्दिर इस मन्दिर के अतिरिक्त निकट ही 26 और जिनालय है । कला और सौन्दर्य युगल सरिताओं के मध् य स्थित इस क्षेत्र का प्राकृतिक सुषमा तो अवर्णनीय है ही, उसके साथ साथ यहाँ की प्राचीन शिल्पकला भी अपना विशिष्ट स्थान रखती है । यहाँ स्थित सभी मन्दिरों की प्रतिमाएँ खड्गासन में, विभिन्न कलाओं का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं । मार्ग दर्शन यहाँ से निकट का रेल्वे स्टेशन अशोक नगर 30 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । जहाँ मन्दिरों का दूर दृश्य-थुवौनजी

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