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रचित 'आलोयण विनति' में इस तीर्थ का व यहाँ के तीर्थाधिराज का उल्लेख है । उसके पश्चात् के इतिहास का पता लगाना कठिन है। विक्रम संवत् 1979 में यह प्रतिमा यहाँ कणबिओं के मोहल्ले में भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । प्रतिमाजी पर कोई लेख नहीं है । इसे लोग शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा भी कहते हैं । विक्रम संवत 2002 के वैशाव शुक्ला त्रयोदशी के दिन विजय उदयसूरीश्वरजी के हाथों नवनिर्मित मन्दिर में पुनः प्रतिष्ठित किया गया ।
विशिष्टता 8 प्रतिमा कई वर्षों तक भूगर्भ में अलोप रही । कहा जाता है कि पुण्य योग से एक महात्मा को इस स्थान पर भूगर्भ में प्रभु प्रतिमा होने का संकेत मिला था । उनके इस संकेत के आधार पर शोधन किया गया और सांकेतित स्थान पर ही प्रभु प्रतिमा प्राप्त हुई ।
प्रभावशाली प्रतिमा का चमत्कार देख यात्रियों की अत्यन्त भीड़ आने लगी और अनेकों चमत्कार हुए । कहा जाता है अभी भी चमत्कार होते हैं ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है ।
कला और सौन्दर्य यहाँ पर जगह-जगह
अनेकों प्राचीन अवशेष व प्रतिमाएँ दिखायी देती हैं, जो मन्दिर का प्रवेश द्वार-वामज
दर्शनीय हैं ।
मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का स्टेशन
कलोल 6 कि. मी. दूर है, जहाँ से टेक्सी व बस की श्री वामज तीर्थ
सुविधा है । अहमदाबाद कलोल के बीच मैन सड़क से
8 कि. मी. आदरेज व वहाँ से वामज 5 कि. मी. दूर तीर्थाधिराज 8 श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । यह वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 107 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। स्थान शेरीशा से लगभग 10 कि. मी. व अहमदाबाद
तीर्थ स्थल वामज गाँव के निकट । से 30 कि. मी. दूर है ।
प्राचीनता प्रभु प्रतिमा की कलाकृति संप्रति सुविधाएँॐ ठहरने के लिए छोटी सी धर्मशाला काल की प्रतीत होती है । लेकिन तीर्थ की सही है, जहाँ पर पानी, बिजली की सुविधा है । शेरीशा तीर्थ प्राचीनता का पता लगाना कठिन है । कहा जाता है ठहरकर ही यहाँ आना सुविधाजनक है । किसी समय यह तीर्य अति प्रख्यात था व यहाँ से पेढ़ी 8 शेठ श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, शेराशी तक सुरंग थी । अभी भी यहाँ जगह-जगह पर पोस्ट : वामज - 382 721. अनेकों प्राचीन खण्डहर अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं । जिला : गांधीनगर, प्रान्त : गुजरात, इससे यह भी कहा जा सकता है कि किसी समय यह एक बड़ी नगरी रही होगी । विक्रम संवत् 1562 में कविवर श्री लावण्य द्वारा
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