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कहा जाता है कि यह क्षेत्र दशवीं से बारहवीं सदी में जैन शासकों द्वारा शासित रहा है, उस काल में इस इलाके में सैकड़ों जिनालयों के निर्माण हुए का उल्लेख है । उनमें कुछ ध्वस्त मन्दिर व भग्नावशेष निकट के केथूली, कूकल्डा, अंत्रालिया, मोड़ी, नीमथूर आदि गांवों में आज भी नजर आते हैं । नीमथूर गांव से निकले एक शिलालेख में “गढ़ अभिनव गिरनार" का उल्लेख हैं तथा पहाड़ी पर भव्य खण्डित जैन प्रतिमाएँ व देवियों की प्रतिमाएँ हैं । उनमें से एक को गोरां देवी मानकर गांव वाले पूजन करते हैं । प्रतिमा के मस्तक पर तीर्थंकर का चिन्ह उत्कीर्ण है । संभवतः उस गांव का नाम नेमीपुर रहा होगा । जिसका अपभ्रंश नीमथूर हो गया हो । यहाँ पर आज १ मन्दिर हैं उनमें यह श्री भलवाड़ा पार्श्वप्रभ का मन्दिर प्राचीनतम व अतिशयकारी है। इसकी प्रतिष्ठा वि. सं. 1548 में होने का उल्लेख है। हो सकता है उस समय मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा हुई हो, क्योंकि इसी मन्दिर में एक श्री आदिनाथ प्रभु की भव्य, अलौकिक प्रतिमा श्री सम्प्रति राजा के समय की प्रतीत होती है जिसपर कोई लेख नहीं है ।
विशिष्टता इस क्षेत्र में जैन धर्म का प्रभाव
इतना अधिक रहा कि जैन मूर्तियाँ, जैन शिलालेख श्री भलवाडा पार्श्वनाथ जिनालय-भानपुरा
आदि आज भी जगह-जगह नजर आते है । इस क्षेत्र में हुई पुरातत्व विभाग की खुदाई में सिंधुघाटी सम्यता के अवशेष भी मिले हैं । प्रागऐतिहासिक युग के बाद इस क्षेत्र में ऐतिहासिक युग के अवशेष भी मिलते हैं।
इस तीर्थ में कई चमत्कारिक घटनाएँ भी घटती तीर्थाधिराज 8 श्री भलवाड़ा पार्श्वनाथ भगवान,
रहती है जैसे पर्दूषण महापर्व पर रात्री में वाद्यों की श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 55 सें. मी.
संगीतमय ध्वनि सुनाई देना, शासनदेव द्वारा मनोवांछित (श्वे. मन्दिर)।
फल पूरा करना, गुरुदेव का पुजारी को ईमानदारी से
कार्य करते रहने के लिये प्रोत्साहित करना आदि । तीर्थ स्थल भानपुरा नगर के मध्य ।
प्रतिवर्ष बसन्त पंचमी को ध्वजा चढ़ाई जाती है। प्राचीनता यह क्षेत्र अतीव प्राचीन है । इस क्षेत्र में पाषाणकाल युग से मराठा काल तक के
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त 4 पुरावशेष मिलते है जो यहाँ के प्राचीनता की याद
और श्वे. मन्दिर 4 दि. मन्दिर व एक दादावाड़ी हैं । दिलाते हैं । प्राप्त कई अवशेष विक्रम विश्वविद्यालय के कला और सौन्दर्य यहाँ पर सभी मन्दिरों में पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित रखे हैं ।
प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है ।। यहाँ कई जगह नींव खोदते वक्त मूर्तियाँ, भग्नावशेष, यहाँ पर हमेशा जल से भरी रहनेवाली तक्षकेश्वर शिलालेख आदि निकलते हैं । कई मूर्तियाँ दिगम्बर नाम की झील व वर्षा काल में प्राकृतिक दृश्यों से बंधुओं ने एकत्रित कर नसियाँ व मन्दिरों में रखी है। भरपूर कई स्थल अतीव दर्शनीय है । विशाल गांधी
श्री भलवाड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ
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