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चरण पादुकाऐं अतीव प्राचीन है, जिनपर कोई लेख नहीं है ।
इसी पहाड़ पर एक विशाल मन्दिर, विशाल गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी की प्रेरणा से निर्मित व प्रतिष्ठित है जिसका कार्य कई वर्षों से चल रहा था । संभवतः इसका निर्माण तीर्थ के जीर्णोद्धार स्वरूप ही है । अतीव कलात्मक व भव्य निर्मित हुवा है, जहाँ सभी तरह की सुविधा भी उपलब्ध है ।
श्री शत्रुंजय गिरिराज की 12 कोश की प्रदक्षिणा में यह तीर्थ आता है ।
विशिष्टता देवाधिदेव श्री आदिनाथ प्रभु का नवाबार पदार्पण होकर पावन बने श्री शत्रुंजय गिरिराज का यह भी एक मुख्य शिखर रहने व प्रभु के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा इस तीर्थ की स्वापना होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता है । कहा जाता है कि श्री आदीश्वर प्रभु के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती भी
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यहीं से मोक्ष सिधारे हैं । श्री भरत चक्रवर्ती के पुत्र श्री हस्तिसेनमुनिजी भी असंख्य मुनिगणों के साथ यहीं से मोक्ष सिधारे है, ऐसी मान्यता । यह भी कहा जाता है कि भरत चक्रवर्ती का हाथी भी अनशन कर यहीं स्वर्ग सिधारा था । इन्ही कारणो से इस पहाड़ी का नाम हस्तगिरि पड़ा ।
इनके अतिरिक्त तलेटी में दो
अन्य मन्दिर मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य इस पहाड़ पर से एक तरफ शत्रुंजयगिरिराज पर मन्दिरों के समूहों व दूसरी ओर कदम्बगिरि पर्वत का दृश्य दिव्य नगरी जैसा प्रतीत होता है । परम पवित्र शेत्रुंजी नदी का मन्द मधुर पवन चित्त को प्रफुल्लित करता है । यहाँ के पवित्र वातावरण से आत्मा को अपूर्व शान्ति मिलती है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन पालीताना 16 कि. मी. है, जहाँ से बस या टेक्सी द्वारा जालीया (अमराजी) आना पड़ता है व वहाँ से पहाड़ी
हस्तगिरि पर्वत पर आदिनाथ प्रभु की प्राचीन देहरी का दूर दृश्य