Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया : ६६-६८ ] चउत्पो महाहियारो
[ १९ प्र:-अड़तालीस हजार चार सो पक्षपन अंश और एक लाख पाच हजार पारसी नौ हार है ॥६५॥
विवा:-अम्बुद्वीपकी परिधिको व्यास से गुरिंगत कर योजन, कोस, धनुष ........ सन्नासन और भवसमासन्न पर्यन्त क्षेत्रफल निकाल लेनेके शद स राशि अवमेष रहती है जो अनन्तानन्त परमामुओके स्थानीय है। .....
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___ उपयुक्त अंशका गुणकारएक्स्ससस्स पुर्व, गुनगारो होरि तस्स परिमाणं ।
एस्म अणंतारणतं, परिभास-कमेण उप्पन्न ।।६६॥ मर्ष:-इस अंदाझा पृपक् गुणकार होता है । उसका परिमाण परिभाषा क्रमसे उत्पन्न यह अनन्तानन्त प्रमाण है ॥६६।।।
विवा:-जम्बूद्वीपके सूक्ष्म क्षेत्रफलका प्रमाण योजन, कोस, धनुष मादि में निकाल लेने के बाद ( गा० ६४ के अनुसार ) अंश अवशिष्ट रहते हैं। इनका गुणकार अनन्तानन्त है। ( शेष विशेषार्थ गाथा ५८ के विशेषार्थ सदृश ही है।)
विजयादिक द्वारोंका अन्तर प्रमाण
सोलस-शोषण होणे, जंबूवीवस्त परिहि-मझम्मि । शरंतर-परिमागं, बर-भणिये होषिकं ला ॥६७।।
भयं: जम्द्वीपको परिधिके प्रमाणमेसे सोलह पोजन कम करके मेष चारका भाग देनेपर जो लब्ध माये वह द्वारोके मन्तरालका प्रमाण है ।।६७॥
जगवी-बाहिर-भागे', दाराणं होषि मंतर-पमाण । उमसीमि-सहस्साणि, नावाणा जोयगाणि अदिरेगा ॥६॥
७६०५२।
१.६.व.क. स. प. उ. भागो।
२. स. मषिरोगा ।