Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[१२] प्रतिकी लंबाई लगभग १४३ और चौडाई ८ इंच है । यह अपेक्षाकृत नयीसी दिखायी देती है। यह देवनागरी : क्षरोंमें देशी मोटे कागजपर लिखी गई है । प्रत्येक पृष्ठपर लगभग १४ पंक्तियां
और प्रत्येक पंक्तिमे कोई ४६ अक्षर हैं । हांसियेकी रेखायें और दण्ड लाल स्याहीके हैं और शेष सब लिखाई काली स्याहीकी है । हमने इस प्रतिकी कुछ गाथाओंकी द प्रतिके पाठोंसे तुलना की, जिससे हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि सम्भवतः यह प्रति द प्रति परसे लिखी गई है। द प्रतिकी विशेष त्रुटियां भी इसमें विद्यमान हैं और उसकी पडीमात्राओंकी यहां गलत नकल की है । इस प्रतिके प्रारम्भिक शब्द मंगल चिह्नके पश्चात् निम्नप्रकार हैं---ॐ नमः सिद्धेभ्यः । अथ त्रिलोकप्रज्ञति प्राकृत लिख्यते ।
( ३ ) स्वर्गीय सेठ रावजी सखाराम दोशी शोलापुरने हमारे पास तिलोयपण्णत्तिकी एक बडी मोटी प्रति भेजनेकी कृपा की । यह प्रति संभवतः शोलापुरकी जैन पाठशालाकी है। इसके मुखपृष्ठपर || श्रीमान् ऐलक पन्नालाल दिगंबर जैन पाठशाला सोलापूर मीति वैशाख शु० १ संवत १९७१ ॥ यह वाक्य लिखा है। इसकी लंबाई १३ इंच और चौडाई ८ इंच है । यह नागरी लिपिमें देशी मोटे कागजपर पं. छुट्टीलाल चौबे द्वारा संवत् १९७२ वैशाख शुक्ला ८ को लिखकर समाप्त की गई है। इसमें २६० पत्र है । प्रत्येक पृष्ठपर १४ पंक्तियां है
और प्रत्येक पंक्तिमें करीब ३७ अक्षर हैं । इसका प्रारम्भ ॥ ॐ नमः सिद्धं ॥ वाक्यसे है। ग्रन्थके अन्तमें श्री सूरी जिनचन्द्रान्तेवासी पं. मेधावीरचित १२४ पद्योंका प्रशस्तिपाठ है, जो उपर्युक्त ब प्रतिके प्रशस्तिपाठसे अक्षरशः मिलता है । इसके पाठ भी अधिकतर ब प्रतिसे मिलते हैं । तो भी पाठ सर्वत्र ब प्रतिके समान नहीं हैं। इसमें त्थ के स्थानपर च्छ, ब्भ के स्थानपर झ, विभक्त्यन्त ओ के स्थानपर उ और क्ख के स्थानपर रक प्रायः पाया जाता है। इसमें लिपिदोष अत्यधिक है । कहींपर कुछ पाठ छूटा है । तो कहींपर उसकी पुनरावृत्ति की गई है । वर्णव्यत्यय भी बहुत है। इसमें हांसियेकी रेखायें, दण्ड तथा प्रायः अन्तराधिकारसमाप्तिसूचक पुष्पिकायें लाल स्याहीसे और शेष सब भाग काली स्याहीसे लिखा गया है।
___ जहां तक हमने मिलान किया है इन उपर्युक्त तीन प्रतियोंमें प्रायः कोई ऐसी बात नहीं पायी गई जो द और ब प्रतियोंसे स्वतन्त्र हो । इसीलिये उनका निर्देश पाठभेदसम्बन्धी टिप्पणोंमें नहीं किया गया है । केवल शोलापुरकी प्रति (३ ) में एक गाथा (४, २६९७ ) ऐसी पाई गई है जो द और ब प्रतियोंमें नहीं है।
हमारे मित्र बंबईनिवासी प्रोफेसर एच. डी. वेलनकरने जैन हस्तलिखित प्रतियोंकी एक उत्तम बृहत् सूची तयार की है, जिसका नाम 'जिनरत्नकोष ' है । यह अभी मुद्रणाधीन है और पूनाकी ‘ भण्डारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट ' नामक संस्थासे प्रकाशित होनेवाली है। इस सूचीके लेखक द्वारा जो उल्लेख संग्रह किये गये हैं और जो उनकी कृपासे हमें प्राप्त हुए हैं
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