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स्वर्ग और पृथ्वी का आलिंगन
बदलेगा आपको? आप ही बदलने की कोशिश में लगे हैं; और आप गलत हैं, और आप ही बदलने की कोशिश में लगे हैं। वह जो गलत है, वह बदलने की कोशिश में लगा है। वह और गलत हो जाएगा। वह जो पागल है, वह अपना इलाज कर रहा है। वह और पागल हो जाएगा। वह जो पहले से ही तिरछा है, वह सीधा होने की कोशिश कर रहा है; वह तिरछापन ही सीधा होने की कोशिश कर रहा है। वह सीधे होने की कोशिश में और तिरछा हो जाएगा। आप जैसे हैं उसमें कुछ कोशिश करने से खतरा है। कोशिश कौन करेगा? वह यत्न कौन करेगा? आप ही करेंगे।
लाओत्से जैसे द्रष्टा कहते हैं कि कुछ मत करो, रुक जाओ-अकर्म! तुम कुछ भी करोगे, भूल हो जाएगी।
अभी इंग्लैंड में एक बहुत अदभुत शिक्षक था, मैथ्यू अलेक्जेंडर। वह अपने शिष्यों से कहता था, तुम कुछ भी किए कि वह गलत होगा; क्योंकि तुम गलत हो। इसलिए मैं तुमसे कुछ करने को नहीं कहता। वह कहता, तुम कुछ करो मत, कुछ दिन के लिए तुम करना बंद कर दो। कुछ दिन के लिए तुम करने का खयाल ही छोड़ दो, कुछ दिन के लिए तुम सिर्फ रह जाओ जैसे हो। उस रह जाने से ठीक होना शुरू हो जाएगा।
___ यह कीमिया तब तक समझ में नहीं आती जब तक इसका उपयोग न किया जाए। हम तो मान ही नहीं सकते; क्योंकि हम इतनी कोशिश करके ठीक नहीं हो पा रहे और लाओत्से जैसे लोग कहते हैं कि तुम कोशिश मत करो और ठीक हो जाओगे, तो हमारी समझ में नहीं आता। हम कहेंगे, इतनी कोशिश से ठीक नहीं हो पा रहे, बिलकुल कोशिश न की तो और गलत हो जाएंगे।
लेकिन मैं आपसे कहता हूं कि चाहे आप कोशिश करो और न करो, आप जैसे हो वैसे ही रहोगे, कुछ ज्यादा गलत नहीं हो जाओगे। कोशिश करने से शायद ज्यादा गलत हो सकते हो; रुक जाने से आप ज्यादा गलत नहीं हो जाओगे। जितने हो, ज्यादा से ज्यादा इतने ही रहोगे। लेकिन कोशिश रुक जाने से इतने भी नहीं रहोगे; जैसे ही कोशिश रुकी कि स्वभाव प्रकट होना शुरू हो जाता है। दौड़ता हुआ आदमी अपने को नहीं देख पाता; देखने के लिए रुकना जरूरी है।
तो लाओत्से से अगर आप परिचित हो पाएं तो शायद आप उपनिषदों से, गीता से, महावीर और बुद्ध से एक नए अर्थ में परिचित हो पाएंगे, जो कि अर्थ आपसे छूट गया है। लाओत्से पर चर्चा कर रहा हूं, ताकि आप उपनिषद को लाओत्से की दृष्टि से अगर देखने में समर्थ हो पाए तो उपनिषद बिलकुल नया अर्थ खोल देंगे, जो आपके स्वामीगण जरा भी नहीं खोल रहे हैं। गीता बिलकुल नया अर्थ प्रकट कर देगी, जो कि न शंकर खोल पाते हैं, न अरविंद खोल पाते हैं, न तिलक खोल पाते हैं। लाओत्से की पहचान बड़ी कीमती सिद्ध हो सकती है। उससे लाओत्से तो बच सकता है, भारत का भी अंतर-हृदय उघाड़ा जा सकता है। इसलिए उस पर चर्चा कर रहा हूं।
अब हम उसके सूत्र को लें। 'ताओ परम है और उसका कोई नाम नहीं है।'
दो बातें हैं। एक, जो भी परम है उसका कोई नाम नहीं हो सकता; जो भी पूर्ण है उसका कोई नाम नहीं हो सकता; वह जो टोटैलिटी है, समग्रता है, उसका कोई नाम नहीं हो सकता।
नाम खंड के हो सकते हैं; नाम व्यक्ति के हो सकते हैं, वस्तुओं के हो सकते हैं। नाम का अर्थ ही है जिसकी सीमा है, जिसकी परिभाषा हो सके। जिसको हम कह सकें कि ऐसा और वैसा नहीं, तो नाम सार्थक हो सकता है। प्रकाश का नाम सार्थक है, क्योंकि इतना तो कम से कम हम कह ही सकते हैं कि जो अंधेरा नहीं है। अंधेरे से सीमा बन जाती है। मृत्यु का नाम संभव हो पाता है, क्योंकि इतना तो हम कह ही सकते हैं कि जीवन की गति, हलचल जहां बंद हो जाती है। जीवन से सीमा बन जाती है। तो जीवन की परिभाषा करनी हो तो मृत्यु की जरूरत पड़ती है; क्योंकि उससे सीमा बनानी पड़ेगी। अगर मृत्यु की परिभाषा करनी हो तो जीवन की जरूरत पड़ती है।