________________
तन्त्र अधिकार
मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
(4) बीमारी दूर करने हेतु :- दीर्घ कालीन रोग हो तो पूर्ण रूप से पका हुआ सीताफल लेकर अंदर से खोखला कर लें व उसमें सात लोंग, एक खोटा सिक्का डाल दें व अपने ऊपर से ७ बार उतार कर मंगलवार को हनुमान मंदिर में चढाएं व पीछे मुड़कर न देखें। घर आकर सर्व रोग मुक्त मंत्र व पारसनाथ चालीसा पढ़ें ऐसा सात मंगलवार करने से अतिशीघ्र लाभ होगा। (5) रोग मुक्ति हेतु- यदि रोग जाने का नाम न ले तो भी रोगी के वजन के बराबर कोयला पानी में बहाये व सर्व रोगमुक्ति मंत्र की जाप करें लाभ होगा। (6) अनेक रोगों की दवा- अजवाइन का सत् (फूल), पीपरमेंट और कपूर इन तीनों को बराबर लेकर शीशी में बन्द करें, इसे अमृतधारा कहते हैं। यह पेट दर्द, सिर दर्द, जी मचलाना, आदि रोगों में लाभदायक होती है, इसे जीभ के छालों पर भी लगाई जाती है। (7) यदि रोग पीछा न छोड़ रहा हो तो सहदेई की जड़ अपने पास रखने से शीघ्र लाभ होता है। (8) सर्व रोगशमन तंत्र- अरलू की लकड़ी रात्रि में मिट्टी के बर्तन में पानी में भिगोकर रखें, प्रातः उस पानी को पिलाने से सर्व रोग शान्त हो जाते हैं। (9) रोग निर्वृत्ति हेतु- शनिवार को थोड़े से जौ के दाने, एक मुट्ठी काले उड़द, एक मुट्ठी काले तिल लेकर पीसकर आटा बना लें, तथा उसकी एक रोटी बनाकर सेंक लें, फिर उस पर तिल का तेल चुपड़ दें व गुड़ रख कर रोगी के ऊपर से ७ बार पैरों से सिर तक णमोकार मंत्र पढ़ते हुए उतार कर भैंस को खिला दें, ऐसा ७ शनिवार करें। (10) स्वास्थ्य लाभ हेतु- धान कूटने वाला मूसल व झाडू- अस्वस्थ व्यक्ति के ऊपर से उतार कर (घुमाकर) उसके सिरहाने रख दें और अपने बायें पैर का जूता उस अस्वस्थ व्यक्ति के ऊपर से सात बार घुमावें और प्रत्येक बार उल्टा जूता जमीन पर पीटें और सात दफे उस व्यक्ति को जूता सुंघा दें तो अस्वस्थ व्यक्ति ठीक हो जायेगा। ( 11 ) फेंट व फिटोड़ा ( अस्वस्थ होने) पर- एक थेपड़ी (गाय के गोबर का उपला) व जली हुई लकड़ी की राख को पानी से भिगोकर एक लड्डु बनायें उसमें एक दस पैसे का सिक्का खोंस दें व एक लोहे की कील भी ठोस दें और रोली व काजल की उस लड्ड पर सात सात टीकी लगा दें और उस लड्डु व थेपड़ी को अस्वस्थ व्यक्ति के ऊपर से उतार कर (यानि घुमाकर) मौन चुपचाप जाकर चौराहे में रख दें सूर्य अस्त के समय। पीछे मुड़कर नहीं देखें तो वह व्यक्ति बहुत जल्द स्वस्थ हो जायेगा। रोग शान्ति का उपाय -रात्रि को रोगी के सिरहाने रूपया दो रूपये रखें। प्रातः काल भंगी (जमादार) को दें। यह क्रिया 43 दिन लगातार करें यह पूर्व जन्म का ऋण है। जो चुकाना ही पड़ेगा। इससे रोग शान्त हो जाता है।
435