Book Title: Tantra Adhikar
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 88
________________ मंन्त्र, यन्त्र और तन्त्र ८. १. २. ३. ४. ५. ६. ७. तन्त्र अधिकार मुनि प्रार्थना सागर मुंडी का रस निकालकर शरीर में मले तो शरीर की पीड़ा दूर हो । ( 125 ) विजया कल्प चैत्र मास में पान के साथ खाने से पण्डित बने । श्रावण मास में शिवलिंगी से खाने से बलवान बने । आश्विन मास में मालकांगनी से खाने से अमरी उतरे, स्वस्थ हो । कार्तिक मास में बकरी के दूध के साथ खाने से सम्भोग शक्ति बढ़े। मार्गशीर्ष मास में गाय के घृत के साथ खाने से दृष्टि-दोष मिटे | पोष माह में तिलों के साथ खाने से जल के भीतर की वस्तु भी दृष्टि गोचर हो । फाल्गुन मास में आंवला के साथ खाने से पैदल यात्रा की शक्ति बढ़े। (126) सरपंखा कल्प पुष्य नक्षत्र में सूर्य उदय के समय नग्न होकर विधिपूर्वक सरपंखा को ले आयें, फिर उसको छाया में सुखा लें, फिर जड़सहित उखाड़ी सरपंखा का चूर्ण कर दूध के साथ अपने शरीर में लेप करें तो सर्व शत्रुओं का स्तंभन होता है। सरपंखा के तिल का गोरोचन के साथ तिलक करें तो राजा प्रजा सर्व वश में होते हैं। दुकान पर बैठें तो व्यापार अधिक चले । सरपंखा के पंचांग की गोली को गाय के दूध के साथ २१ दिन तक पिलायें तो स्त्री गर्भ धारण करें । ( 127 ) श्वेतगुंजा कल्प शुक्ल पक्ष में श्वेतगुंजा को दशमी के दिन पूरी जड़ सहित ले, पंचांग ले फिर उसकी जड़ को पान के साथ जिसको खाने को देवें वह वश होय, स्त्री वश होय । १. पान के साथ घिसकर गोरोचन से टीका करें, फिर जिसका नाम ले वह वश में होय अथवा गुंजा चंदन मैनसिल से तिलक करें जिसका नाम लेवें वह वश में होय । २. गुंजा, प्रियंगु, सरसों - इन चीजों को जिसके माथे पर डालें तो वह वश में होता है। ३. गुंजा की जड़ को पीसकर लगावे अथवा पीवें तो वातरोग का नाश होता है। ४. गुंजा की जड़ को पानी के साथ पीने से मूत्र कुच्छ नहीं होता है । ५. गुंजा की जड़ को घिसकर पानी के साथ पिलाने से व लगाने से सांप, बिच्छु व अन्य विषैले जन्तुओं का विष दूर होय । ६. गुंजा की जड़ को स्त्री की कमर में बांधने से सुख से प्रसव होता है । 510

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