Book Title: Tantra Adhikar
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 83
________________ तन्त्र अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर प्रातः रविपुष्य योग में " ॐ हीं क्षौं फट् स्वाहा” इस मंत्र का उच्चारण कर मूल व पंचाग आदि ले आएं, फिर मंत्र से मंत्रित कर प्रयोग में लें। ॐ नमो भगवती सहदेवी सतत ध्यनीय सद्वेवद्व कुरू कुरू स्वाहा। मंत्र ॐ नमो रूपावती सर्व प्रीतेति श्री सर्व जनरंजी सर्व लोक वशीकरणी सर्व सुख रंजनी महामाईल घोल थी कुरू कुरू स्वाहा। १. कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी या अष्टमी को लाकर चूर्ण कर किसी को पान में दें तो वह सात रोज में आवें। २. चूर्ण कर सिर पर डालकर जिसके पास जाए, वह इजत और प्रतिष्ठा से पेश आवें। ३. जड़ को गाय के घृत में मासिक होने के ५ दिन बाद ५ रोज तक खिलावे तो सन्तान हो। ४. जड़ को तिजोरी में रक्खे तो अटूट भंडार रहे। (117) बहेड़ा कल्प विधि-विधि-विधान से लाकर निम्न मंत्र से मंत्रित करें- “ॐ नमः सर्वभूताधिपतये ग्रस-ग्रस शोषय शोषय भैरवीज्याज्ञापयति स्वाहा। १. दाहिनी जांघ के नीचे रखकर भोजन करें तो अपनी खुराक से बीस गुना ज्यादा भोजन कर सकता है। २. तिजोरी में रखें तो अटूट भंडार रहे। (118) निर्गुण्डी कल्प विधि-विधि पूर्वक पंचांग लाकर निम्न मंत्र से मंत्रित करें- “ॐ नमो गणपतये कुबेरये कद्रिके फट् स्वाहा। सातवें रोज वृक्ष का पंचाग ले आवें। १. पुष्य नक्षत्र में निर्गुण्डी और सफेद सरसों दूकान के द्वार पर रखी जाय तो अच्छा क्रय-विक्रय होता है। (119) हाथा जोड़ी कल्प विधि-शुभ दिन, शुभ योग में लें और निम्नलिखित मंत्र १२५००० जाप करके इसको सिद्ध कर ले। मंत्र- ॐ किलि-किलि स्वाहा। प्रयोग-किसी से भी वार्ता करने में साथ रखे तो बात मानें। (120 ) श्वेतार्क कल्प 505

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