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सुत्तागमे
[बिहक्कप्पसुत्त न्थाण वा निग्गन्थीण वा आहाराइणियाए सेज्जासंथारयं पडिग्गाहेत्तए ॥ ९४ ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा आहाराइणियाए किइकम्मं करेत्तए ॥ ९५ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अन्त(रा)रगिहंसि आसइत्तए वा चिट्ठित्तए वा निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा निद्दाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, असणं वा ४ आहारमाहारेत्तए, उच्चारं वा ४ परिद्ववेत्तए, सज्झायं वा करेत्तए, झाणं वा झाइत्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए, अह पुण एवं जाणेजा-जराजुण्णे वाहिए (थेरे) तवस्सी दुब्बले किलन्ते (...जजरिए) मुच्छेन्ज वा पवडेज वा, एवं से कप्पइ अन्तरगिहंसि आसइत्तए वा जाव ठाणं वा ठाइत्तए ॥ ९६ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अन्तरगिहंसि जाव चउगाहं वा पञ्चगाहं वा आइक्खित्तए वा विभावेत्तए वा किट्टित्तए वा पवेइत्तए वा, नन्नत्थ एगनाएण वा एगवागरणेण वा एगगाहाए वा एगसिलोएण वा, से वि य ठिच्चा, नो चेव णं अट्ठिच्चा ॥ ९७ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अन्तरगिहंसि इमाइं ( च णं) पञ्च महव्वयाई सभावणाई आइक्खित्तए वा जाव पवेइत्तए चा, नन्नत्थ एगनाएण वा जाव एगसिलोएण वा, से वि य ठिच्चा, नो चेव णं अ(ठि)ट्ठिच्चा ॥ ९८ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पडिहारियं (वा सागारियसंतियं) सेज्जासंथारयं आयाए अपडिहटु संपव्वइत्तए ॥ ९९ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा सागारियसन्तियं सेज्जासंथारयं आयाए अहिगरणं कठ्ठ संपव्वइत्तए ॥ १०० ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पडिहारियं वा सागारियसन्तियं वा सेजासंथारयं आयाए विगरणं कटु संपव्वइत्तए ॥ १०१॥ इह खलु निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पडिहारिए वा सागारियसन्तिए वा सेजासंथारए (विप्पण(से)सिज्जा) परिब्भटे सिया, से य अणुगवेसियव्वे सिया; से य अणुगवेसमाणे लभेजा, तस्सेव अणुप्प(पडि)दायव्वे सिया; से य अणुगवेसमाणे नो लभेजा, एवं से कप्पइ दोच्चं पि ओग्गहं ओगिण्हि(अणुन्न()वि)त्ता परिहारं परिहरित्तए ॥१०२ ॥ जद्दि(जं दि)वसं च णं समणा निग्गन्था सेज्जासंथारयं विप्पजहन्ति, तद्दि(तं दि)वसं च णं अवरे समणा निग्गन्था हव्वमागच्छेन; सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणु(न्ना-व)न्नवणा चिट्ठइ अहालन्दमवि ओग्गहे ॥१०३ ॥अत्थि याइं थ केइ उवस्सयपरियाव(नाए)न्ने अचित्ते परिहरणारिहे, सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालन्दमवि ओग्गहे ॥१०४॥ से वत्थूसु अव्वावडेसु अव्वोगडेसु अपरपरिग्गहिएसु अमरपरिग्गहिएसु सच्चेव ओग्गहस्स पुन्वाणुन्नवणा चिठ्ठइ अहालन्दमवि ओग्गहे ॥ १०५ ॥ से वत्थूसु वावडेसु वोगडेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्सट्ठाए दोच्च पि ओग्गहे अणुन्नवेयव्वे