Book Title: Suttagame 02
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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पढमं परिसिद्धं
[ कप्पसुतं
उसमे णं अरहा कोसलिए कासवगुप्तेणं, तस्स णं पंच नामधिजा एवमाहिज्जंति, तं जहा - उसमे वा, पढमरायाइ वा, पढमभिक्खायरेइ वा, पढमजिणे वा, पदमति ( क ) थरे इ वा ॥ २१० ॥ उसमे णं अरहा कोसलिए दक्खे दक्खपणे पडवे अल्ली भए विणीए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमझे वसई वसिता तेहिं पुव्वसयसहस्साइं रज्जवासमझे वसई, तेवद्धिं च पुव्वसय सहस्साई रज्जवासमझे वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणस्य पज्जवसाणाओ बावतरि कलाओ चउस िमहिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिन्नि वि पयाहियाए उवदिसइ उवदिसित्ता पुत्तस्यं रजसए अभिसिंचइ अभिसिंचित्ता पुणरवि लोयंतिएहिं जीयकपिएहिं देवेहिं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं सेसं तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाव दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स अट्ठमी पक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे सुदंसणाए सिवियाए सदेवम
यासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे जाव विणीयं रायहाणि मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ निग्ग च्छित्ता जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे जाव सयमेव चउमुद्वियं लोयं करेइ करित्ता छणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइणाणं खत्तियाणं चउहिं पुरिससहस्सेहिं सद्धिं एगं देवदूतमादाय मुंडे भवत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए || २११ ॥ उसमे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं निच्चं वोसकाए चियत्तदेहे जाव अप्पाणं भावेमाणस्स (इक्क) एगं वाससहस्सं विइक्कतं, तओ णं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे फग्गुणबहुले तस्स णं फग्गुणबहुलस्स ए (इ) कारसीपक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि पुरिमतालस्स नगरस्स बहिया सगडमुहंसि उज्जाणंसि नग्गोहवर पायवस्स अहे अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं - आसाढाहिं नक्खत्ते जोगमुवागणं झाणंतरियाए वमाणस्स अणंते जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥ २१२ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलियम्स चउरासीई गणा चउरासीई गणहरा हुत्था ॥ २१३ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेण पामुक्खा (ओ)णं चउरासी (इ) ओ समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया हुत्था ॥ २१४ ॥ उभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभीसुंदरीपामुक्खाणं अजियाणं तिणि रायसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया हुत्था ॥ २१५ ॥ उसभरसणं... सिज्जंस पामुक्खाणं समणोवासगाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ पंच सहस्सा उक्कोसिया समणोवास (ग) गाणं संपया हुत्था ॥ २१६ ॥ उसभस्स णं सुभद्दापामुक्खाणं समणोवासियाणं पंच सयसाहस्सीओ चउप्पन्नं च सहस्सा उक्कोसिया सम
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