Book Title: Suttagame 02
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti

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Page 1285
________________ ३८ पढम परिसिढे [कप्पसुत्तं बायपडियाए अणुपविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय बुट्टिकाए निवइजा, कप्पड़ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥ ३२ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगस्वे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडि. गाहित्तए ॥ ३३ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंगसवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पड़ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहिनए ॥ ३४ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं दोऽवि पुवाउत्ताइं (वति), कप्पंति से दोऽपि पडिगाहित्तए, तत्थ से पुवागमणेणं दोऽवि पच्छाउत्ताई, एवं नो से कप्पंति दोऽवि पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुवागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए ॥ ३५ ॥ वासावासं पजोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुट्ठिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, नो से कम्पइ पुव्वगहिएणं भत्तपाणेणं वेलं उवायणावित्तए, कप्पइ से पुव्वामेव वियडगं भुच्चा (पिच्चा) पडिग्गहगं संलिहिय संलिहिय संपमन्जिय संपमज्जिय ए[गाययं]गओ भंडगं कट्टु सावसेसे सूरे जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए, नो से कप्पड़ तं रयणिं तत्थेव उवायणावित्तए ॥ ३६ ॥ वासावासं पज्जोस वियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय बुटिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उबस्सयंसि वा० वियद्धगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥ ३७ ॥ तत्थ नो कप्पइ एगम्स निग्गंधस्स एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिद्वित्तए १, तत्थ नो कप्पइ एगस्य निग्गंथरस दुण्हं निग्गंथीणं एगयओ चिट्ठित्तए २, तत्थ नो कम्पइ दुण्डं निग्गंथाणं गाए य निग्गंथीए एगयओ चिट्ठित्तए ३, तत्थ नो कप्पइ दुण्हं निग्गंथाणं दुण्डं निग्गंथीण य एगयओ चिहित्तए ४, अत्थि य इत्थ केइ पंचमे खुए वा बुडिया(इ) वा अन्नेसिं वा संलोए सपडिदुवारे एवं ण्हं कप्पइ एगयओ चिद्वित्तए ॥ ३८ ॥ वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अगुपविट्ठस्स निर्गािज्मय निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्मयंसि वा अहे वियडगिहसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिट्ठित्तए, एवं चउभंगी, अत्थि णं इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरिया(इ)वा अन्नेसि वा संलोए सपडिदुवारे, एवं कम्पइ एगयओ

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