Book Title: Suttagame 02
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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ह० विगइवजणं]
पढम परिसिटुं
अगाराई कडियाई उक(वि)पियाई छन्नाई लित्ताई गुत्ताई घट्ठाई मट्ठाई संपधूमियाई खाओदगाइं खायनिद्धमणाई अप्पणो अट्ठाए कडाइं परिभुत्ताइं परिणामियाइं भवंति, से तेणटेणं एवं बुच्चइ-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पजोसवेइ ॥ २॥ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकते वासावासं पज्जोसवेइ तहा णं गणहरावि वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसविंति ॥ ३॥ जहा णं गणहरा वासाणं सवीसइराए जाव पजोसविंति तहा णं गणहरसीसावि वासाणं जाव पज्जोसविंति ॥ ४ ॥ जहा णं गणहरसीसा वासाणं जाव पज्जोसविंति तहा णं थेरावि वा(सावासं)साणं जाव पज्जोसविंति ॥५॥ जहा णं थेरा वासाणं जाव पज्जोसविंति तहा णं जे इमे अजत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति ते (एए) वि य णं वासाणं जाव पज्जोस(वें)विति ॥ ६॥ जहा णं जे इमे अजताए समणा निग्गंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसविंति तहा णं अम्हंपि आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव पजोसर्विति ॥ ७ ॥ जहा णं अम्हं(पि) आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव पज्जोसविंति तहा णं अम्हेवि वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पजोसवेमो, अंतरा वि य से कप्पइ[पज्जोसवित्तए], नो से कप्पइ तं रयाणि उवाइणावित्तए ॥ ८ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं उग्गहं ओगिण्हित्ताणं चिटिडं अहालंदमवि उग्गहे ॥ ९ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए ॥ १० ॥ जत्थ नई निचोयगा निच्चसंदणा, नो से कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए ॥ ११॥ एरावई कुणालाए, जत्थ चक्किया सिया पगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा, एवं चकिया एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं गंतुं पडिनियत्तए ॥ १२ ॥ एवं च नो चक्किया, एवं से नो कप्पड सव्वओ समंता सकोसं जोयणं गंतुं पडिनियत्तए ॥ १३ ॥ वासावासं पजोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ-'दावे भंते !' एवं से कप्पइ दावित्तए, नो से कापइ पडिगाहित्तए ॥१४॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वुत्तपुत्र भवइ-'पडिगाहे (हि) भंते !' एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ दावित्तए ॥ १ ॥ वासावासं पज्जोसबियाणं अत्थेगझ्याणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ-'दावे भंते ! पडिगाहे भंते !' एवं से कप्पइ दावित्तएवि पडिगाहित्तएचि ॥ १६ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हट्ठाणं तुट्ठाणं आ(रु)रोग्गाणं बलियसरीराणं इमाओ विगईओ अभिक्खणं अभिक्खणं आहारित्तए, तंजहा-खीरं, दहि,

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