________________
१०३८
सुत्तागमे
[उत्तरज्झयणसुत्तं अह चरणविहिणामं एगतीसइमं अज्झयणं
चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥१॥ एगओ विरई कुजा, एगओ य पवत्तणं । असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥ २॥ रागदोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रंभई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ३ ॥ दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥ ४ ॥ दिव्वे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥५॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खू वजई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ६ ॥ वएसु इंदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ७ ॥ लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ८ ॥ पिंडोग्गहपडिमासु, भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ९ ॥ मएसु बंभगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे । जे. भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १० ॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥११॥ किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १२ ॥ गाहासोलसएहि, तहा असंजमंमि य । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मंडले ॥ १३ ॥ बंभंमि नायज्झयणेसु, ठाणेसु असमाहिए । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १४ ॥ एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १५॥ तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १६ ॥ पणवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १७ ॥ अणगारगुणेहिं च, पगप्पंमि तहेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १८॥ पावसुयपसंगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १९ ॥ सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥ २० ॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं सो सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिओ ॥ २१ ॥ त्ति-बेमि ॥ इति चरणविहिणाम एगतीसइमं अज्झयणं समत्तं ॥३१॥