Book Title: Suttagame 02
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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मुणिसुव्वयजिणंतरं] पढमं परिसिढे झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने जाव सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥ १७४ ॥ अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठारस गणा अट्ठारस गणहरा हुत्था ॥ १७५ ॥ अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स वरदत्तपामुक्खाओ अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया हुत्था॥१७६ ॥ अज्जजक्खिणीपामुक्खाओ चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ उकोसिया अज्जियासंपया हुत्था॥ १७७ ॥.. 'नंदपामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सीओ अउणत्तरिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था ॥ १७८ ॥ महासुव्वयापामुक्खाणं समणोवासि(गा)याणं तिण्णि सयसाहस्सीओ छत्तीसं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था॥१७९॥ चत्तारि सया चउद्दमपुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसन्निवाईणं जाव संपया हुत्था ॥ १८० ॥ पन्नरस सया ओहिनाणीणं, पन्नरस सया केवलनाणीणं, पन्नरस सया वेउव्यियाणं, दस सया विउलमईणं, अट्ठ सया वाईणं, सोलस सया अणुत्तरोववाइयाणं, पन्नरस समणसया सिद्धा, तीसं अजियासयाई सिद्धाइं ॥ १८१ ॥ अरहओ णं अरिठनेमिस्स दुविहा अंतगडभूमी हुत्था, तंजहा-जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य, जाव अट्ठमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, दुवा(ल)सपरियाए अंत मकासी ॥ १८२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी तिण्णि वाससयाई कुमारवासमज्झे वसित्ता चउप्पन्नं राइंदियाई छउमत्थपरियायं पारणित्ता देसृणाई सत्त वाससयाई केवलिपरियायं पाउणित्ता पडिपुण्णाई सत्त वाससयाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता एगं वाससहस्सं सव्वाउयं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसमसुसमाए समाए बहुविइक्वंताए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्रखे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स अट्ठमीपक्षेणं उप्पि उजितसेलसिहरंसि पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्यरत्तावरत्तकालसमयंसि नेसज्जिए कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ १८३ ॥ अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स कालगयस्स जाव सव्वदुक्खापहीणस्स चउरासीई वाससहस्साई विइकताई, पंचासीइमस्स वाससहस्सस्स नव वाससयाई विइयंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८४ ॥ २२ ॥ इइ सिरिनेमिनाहचरियं समत्तं ॥
नमिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स पंच वाससयसहस्साई चउरासीई च वाससहस्साई नव य वाससयाई विइकंताई, दसमस्स य वाससयस अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८५ ॥ २१ ॥ मुणिसुव्व

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